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पत्र : गो० कृ० गोखलेको

सदा हमारा विरोध ही करते आये हैं ।' परन्तु भारतीयोंने ऐसा नहीं किया। उन्होंने इस अवसरपर जहाँ मदद दे सकते थे वहाँ मददगार होने की कोशिश की। लड़ाईके विभिन्न मोर्चोंपर उन्होंने उदारतापूर्वक मदद दी। उनकी महिलाओंने घायलों और बीमारोंके लिए आरामको चीजें देकर मदद की। और उनमें से बहुतसे लड़ाईके मैदानपर पहुँच कर जिस-किसी रूपमें उनसे बनता है, हमारी फौजोंकी मदद कर रहे हैं। यह बरताव उनके पक्षमें प्रशंसाके साथ याद रखने लायक है। ऐसे नाजुक समयमें अपनी रंगदार आबादीकी वफादारीपर हम विश्वास कर सकते हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है। इससे हमें उन छोटे-छोटे दोषोंको सह लेने में मदद मिलनी चाहिए, जिनको हम शान्तिके समयमें बहुत बड़ा रूप देने लग जाते हैं ।

सज्जनो, यह उस समुदायके पक्षमें प्रमाण है जो सचाई और प्रेमके मार्गपर चलनेका प्रयत्न कर रहा है।

[ अंग्रेजीसे ]
इंग्लिशमैन, २८-१-१९०२

१६९. पत्र : गो० कृ० गोखलेको

"एस० एस० गोआ" से,
जनवरी ३०, १९०२

प्रिय प्रोफेसर गोखले,

आशा है, हम कल रंगून पहुँच जायेंगे। मौसम बहुत अच्छा रहा । कैसी इच्छा होती है कि आप भी जहाजमें होते ! आपकी खाँसी दो दिन में ही चली जाती। लेकिन मैं आशा करता हूँ कि आपकी तबीयत पहलेसे अच्छी होगी और आपने मुनासिव सलाह ले ली होगी ।

जबतक आपके घर रहा, आपने बड़ी मेहरबानी दिखाई[१]। इस सबके लिए आपको कैसे धन्यवाद दूं ? अपने और मेरे बीच की दूरीको मिटाने के लिए आप कितने चिन्तित रहे, यह मैं आसानीसे नहीं भूल सकता। आपके विश्वास और मार्गदर्शनका विशेषाधिकार पा लेने के बाद मुझे बिलकुल सन्तुष्ट हो जाना चाहिए। इससे अधिकका मैं अधिकारी नहीं। सच्ची सम्मति है -- और मैं अपनी सच्चाईमें किसीके सामने झुक नहीं सकता-- कि आपने देशके प्रति मेरी सेवाओंका मूल्यांकन करनेमें हृदसे ज्यादा उदारतासे काम लिया। आपने मेरे जीवनकी छोटी-छोटी घटनाओंको बढ़ा-चढ़ाकर बताया है। फिर भी जब मैं यह सोचने लगता हूँ तो मुझे महसूस होता है कि सोमवारकी शामको आपकी रुचिपर शंका करनेका मुझे कोई अधिकार नहीं था। मैंने बड़ी धृष्टता की। यदि मुझे मालूम होता कि इससे मैं आपके हृदयको ठेस पहुँचाऊँगा, जो मैंने पहुँचाई है, तो निश्चय ही मैंने यह अविनय न की होती । मुझे भरोसा है कि आप मुझे मेरी इस मूर्खताके लिए क्षमा कर देंगे।[२]

  1. गांधीजी गोखलेके साथ कलकतेमें एक मास ठहरे थे । ( गोखले के लिए, देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४१७)
  2. गोखले फलकतेमें इधर-उधर जाने के लिए ट्रामगाडीकी अपेक्षा घोड़ागाड़ीको अधिक पसन्द करते थे, क्योंकि उनकी विस्तृत लोकप्रियताको देखते हुए उनके लिए ट्रामगाड़ीमें बैठकर जाना परेशानीका कारण बनता । इसलिए गांधीजीने कारण जाने बिना ही उनकी इस पसन्दगीपर जो टीका-टिप्पणी की, उससे उन्हें दुःख हुआ । (देखिए आत्मकथा, गुजराती, १९५२, पृष्ठ २३१-३२) ।