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सम्पूर्णं गांधी वाङ्मय

शिक्षा के निमित्त आपने महान् कार्य किया है। उसके प्रशंसक इस छोटे-से जहाजमें भी मौजूद हैं ।

मैं कोचवानको इनाम देना भूल गया। क्या आप कृपया श्री भाटेसे कह देंगे कि वे उसको एक रुपया और साईसको एक अठन्नी दे दें ?

कृपया डा० प्रफुल्लचन्द्र राय[१] को मेरी याद दिलायें ।

आपका सच्चा,
मो० क० गांधी

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (जी० एन० ३७२३) से ।

१७०. पत्र : गो० कृ० गोखलेको

७, मुगल स्ट्रीट,
रंगून
फरवरी २, १९०२

प्रिय प्रोफेसर गोखले,

चूंकि सोमवारसे पहले कलकत्तेको डाक नहीं जानेवाली थी, इसलिए मैंने जहाज में लिखा पत्र डाकमें डालना मुल्तवी कर दिया था । उसे मैं इस पत्रके साथ ही बन्द कर रहा हूँ।[२]

सौभाग्यसे प्रोफेसर काथवटे[३] मुझे मिल ही गये। वे कल सुबह मद्रासको रवाना हुए। प्रोफेसर साहबको रंगूनकी आबोहवा पसन्द नहीं आई। वह उनके लिए बहुत कष्टप्रद रही । उनको स्फूर्तिदायक जलवायुकी आवश्यकता है। रंगूनका जलवायु ऐसा प्रतीत नहीं होता । सफाईकी दृष्टिसे यह बहुत अच्छी जगह है। सड़कें चौड़ी और सु-आयोजित हैं । नालियोंकी व्यवस्था भी काफी अच्छी दिखाई देती है ।

आपका सच्चा,
मो० क० गांधी

मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (जी० एन० ३७२४ ) से |

  1. भारतीय देशभक्त और वैज्ञानिक डा० (सर) प्रफुल्लचन्द्र राय, १८६१ - १९४४ ।
  2. देखिए पिछला शीर्षक।
  3. गोखलेके एक मित्र, जिनसे गांधीजीकी कलकतेमें भेंट हुई थी