पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/२८३

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१७१. पत्र : पुरुषोत्तम भाईचन्द देसाईको

[ राजकोट
फरवरी २६, १९०२ के बाद ]

परशोत्तम भाईचन्द देशाई

टोंगाट
डर्बन, द० आ०

रा० रा० परशोत्तम भाईचन्द देशाई,

बड़ी दिलगीरीकी बात है कि मुझे भरोसा देकर आप अपना वचन पाल नहीं सके । आपसे मैंने कहा था कि इस पैसे पर मैं कितना निर्भर करूँगा । और फिर लिखता हूँ[१] कि मुझे पूरी-पूरी जरूरत है और यदि भेजेंगे तो मेहरबानी मानूँगा। तीन महीनों की किस्तें चढ़ गई हैं। ये सारीकी-सारी भेजिये और फिर बाकी नियमसे हर महीने आयें तो बहुत मदद हो सकेगी। मैं सोचता था उससे देशकी स्थिति खराब है। विशेष लिखने की जरूरत नहीं होगी। आपका व्यापार कैसा चल रहा है सो लिखिए। फकत |

गांधीजीके हस्ताक्षरोंमें दफ्तरी गुजराती प्रतिको फोटो-नकल (एस० एन० ३९७०) से ।


१७२. पत्र : देवकरन मूलजीको

[ राजकोट
फरवरी २६, १९०२ के बाद ]

देवकरण मूलजी

टंकारा [ काठियावाड़ ]

रा. रा. देवकरन मूलजी,

आपका २१ जनवरीका पत्र यहाँ आया । पर मेरे उत्तर भारत में होनेसे आजतक बिना जवाबके पड़ा है । मुझे लगता है कि आपको इस समय तुस्त नेटाल जाने में बड़ी मुश्किल होगी। लड़ाईकी वजहसे जिस आदमी के पास नकद रु० १५०० हों वही वहाँ जा सकता है । ऐसी स्थिति आपकी न हो तो तबतक वहाँ नहीं जा सकते। समझ लीजिए, जबतक लड़ाई है तबतक निकलना संभव नहीं होगा। किंतु अगर आप बाहर-देश जाना ही चाहते हों तो मैं अभी रंगून होकर आया हूँ; यदि वहाँ जायें तो मेरे अनुभवसे ऐसा लगता है कि पेट भरने योग्य कमा सकेंगे । यह देश आबाद है और उपजाऊ है; इसलिए अगर आदमी तन्दुरुस्त हो और शरीर-श्रम करनेमें शरमाये नहीं, आलस न करें और सचाईसे चले तो ऐसे देशमें रोटी कमाना मुश्किल हो ही नहीं सकता । रंगूनमें उतरनेकी एक भारतीय गृहस्थने बहुत अच्छी सुविधा कर रखी है। इसलिए आपको इस तरहकी कोई अड़चन नहीं होगी । मद्रास अथवा कलकत्तेके रास्ते जा सकते हैं। जानेका खर्च ३० से ४० रु० तक पड़ता है।

दफ्तरी गुजराती प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ३९३८) से ।

  1. यह पहला पत्र उपलब्ध नहीं है।