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१७३. पत्र: पारसी रुस्तमजीको

[ राजकोट
मार्च १, १९०२ ][१]

सेठ श्री पारसी रुस्तमजी जीवनजी,

आपके ३१ दिसंबर, ७ जनवरी और १० फरवरीके तीनों पत्र मिले। आपने २५ पौंडकी हुंडी काठियावाड़ में अकालपीड़ितोंको खिलाने-पिलाने या किसी दूसरे परमार्थमें, जो मुझे ठीक लगे, लगानेके लिए भेजी सो मिली है ।

मैं उत्तर भारत से तीन दिन हुए आया हूँ । आपके तीनों पत्र यहीं मिले। एक पत्र रंगून में मिला था पर वह अभी मेरे सामानके साथ है। और सामान सारा कलकत्तेसे लौटकर नहीं आया है। किंतु उसमें कोई खास जवाब देने लायक बात मुझे याद नहीं पड़ती। काठियावाड़में भुखमरी बहुत ही है। अभीतक किस दरजेतक भूखसे मरते हुए लोगोंको मदद मिल रही है, इस बातकी पूरी जानकारी इकट्ठी नहीं कर पाया हूँ । इकट्ठी कर लेनेपर आपकी भेजी हुई हुंडीका उपयोग करूँगा । यदि अभी हाल एकदम जरूरी नहीं जान पड़ा तो इस पैसे का उपयोग जूनके बाद करनेका विचार है, क्योंकि सच्ची तंगी तो अभी बादमें आयेगी और यदि दैवयोगसे जूनमें बरसात नहीं हुई तो जैसा सत्तान्नवेमें हुआ था वैसा इस समय भी हो सकता है। इसलिए जितना पैसा हो उतना सब काम में आ सकेगा ऐसी समझके साथ बिना बहुत जरूरतके इस समय इस पैसेका उपयोग करना मैं ठीक नहीं मानता। इस बात में फेरफार होनेपर में लिखकर सूचित करूँगा । यह हुंडी कल यहाँके एक साहूकारके यहाँ ८ आना सैकड़ा ब्याजपर[२] रख दी है। जो करूँगा सो खुद सामने रहकर । इसलिए इस विषय में चिन्ता नहीं करेंगे।

श्री खान और श्री नाजर आपका काम बराबर नहीं देखते यह बात मैं समझ नहीं पाता । धीरज रखकर जो काम लिया जा सके सो लेते रहना चाहिए। हमेशा सब लोगों की बोल-चाल और दूसरी रीत-भाँत एक जातकी नहीं हो पाती, किंतु इसपर से विरुद्ध अनुमान करना मेरी समझमें ठीक नहीं है। जबतक कोई दिया हुआ काम सावधानीसे करता हो तबतक वह बोल-चाल कैसी करता है इस तरफ ध्यान देना जरूरी नहीं है ।

यहाँ अबतक जो कुछ काम हुआ है उसका अहवाल सेक्रेटरीको भेज चुका हूँ। वह आपने देखा होगा । इसलिए उसे नहीं दुहराता । वहाँके गवर्नरने अपनी ओरसे मानपत्र लेना अस्वीकार कर दिया है और जो यह कहा है कि भारतीय नेटालकी बस्तीके एक भाग हैं, तो किस भावार्थमें उसने कहा है सो लिखें। संसदमें हम लोगों के बारेमें सवाल पूछा गया और श्री चेम्बरलेनने उसका जवाब दिया सो आपने देखा होगा।

लॉर्ड मिलनर क्या लिखते हैं इसकी तुरत ही मुझे खबर दें । बंगाल व्यापार संघ (चेम्बर आफ़ कामर्स) हम लोगोंका काम हाथमें लेनेको तैयार ही है। वहाँसे जो कागज-पत्र, अखबार

  1. यह पत्र कलकतेसे लौटनेके तीन दिन बाद बुधवार फरवरी २६ को लिखा गया । देखिए" पत्र : गोखलेको," मार्च ४, १९०२ ।
  2. भारतीय साहूकार ब्याजकी महीनेवार दरें तय करते हैं, किन्तु वसूली सालके अन्तमें की जाती है ।