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पत्रः गो० कृ० गोखलेको

आदि भेजने हों उनकी एक-एक नकल जिस तरह आप अन्य सज्जनोंको भेजते हैं उसी तरह माननीय प्रोफेसर गोखलेको पूना भी भेजते रहें । ये साहब अभी बड़ी कौंसिल के मेम्बर हो गये हैं और हम लोगोंके लिए बहुत कुछ करते रहते हैं ।

वहाँ कांग्रेसका काम ढीला पड़ गया है यह पढ़कर बहुत दिलगीर हुआ हूँ । आपसे जितना बने उतना करें। मान-अपमान, अड़चनें वगैरा धीरजसे सहन करते हुए नम्रताके साथ जो फर्ज समझमें आये उसे अदा करना, इतना बस है । मैं दूर बैठकर और अधिक क्या लिख सकता हूँ ?

सर मंचरजीको बुलानेका विचार छोड़ दिया गया है यह बात हर तरहसे दिलगीरीकी है। यदि और मेहनत करके उन्हें आमंत्रण दिया जा सके तो अच्छा हो ।

जब बंबई जाऊँगा तब आपके यहाँ भी जा सकूंगा और बच्चोंकी खबर जानूंगा। जाना कब होगा यह तय नहीं है । मेरा सब बहुत अव्यवस्थित है। यदि खर्च पुसाता दिखा तो बंबईमें रुकनेका इरादा है । यहाँसे बैठकर सामाजिक काम करना जरा मुश्किलकी बात है । जो हो जाये सो ठीक। फिलहाल दो-तीन महीना तो डॉक्टर मेहताका खयाल ऐसा ही है कि मुझे पूरा-पूरा आराम लेना चाहिए।

बाल-बच्चे यहीं हैं। फिलहाल यहीं की शालामें जाते हैं। अंगरेजी चौथी कक्षा में चि० गोकुलदास और हरिलाल हैं । चि० मणिलाल घरपर अभ्यास करता है। शाला में किसी कक्षामें दाखिल नहीं हुआ । सलाम बाँचना । आपकी तबीयत अब बिलकुल ठीक हो गई होगी ऐसी आशा करता हूँ । स्वास्थ्यको ठीकसे सँभालकर रखना जरूरी है । खानेपीने में मिताहार और नियमपालन मुख्य आवश्यकताकी बातें हैं। जो साहब मुझे याद करें उन्हें मेरे सलाम कहिए।

दफ्तरी गुजराती प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ३९३७) से ।

१७४. पत्र : गो० कृ० गोखलेको

राजकोट
मार्च ४, १९०२

प्रिय प्रोफेसर गोखले,

गाड़ीमें पाँच रात बितानेके बाद मैं पिछले बुधको -- अर्थात् बीचके स्टेशनोंपर रुके बिना मैं जिस दिन पहुँचता उससे सिर्फ एक दिन बाद -- यहाँ पहुँचा ।

बड़ी मुश्किलसे ड्योढ़े दर्जेके एक डिब्बेमें जगह मिली, वह भी यह वादा करने पर कि अगर जरूरत होगी तो मैं सारी रात खड़ा रहूँगा । दर हकीकत, कुछ मुसाफिरोंके दोस्तोंकी यह एक चाल थी। उन्होंने और अधिक मुसाफिरोंको घुसनेसे रोकनेके लिए सब बची-खुची जगह घेर ली थी। गार्डके गाड़ी छोड़नेके लिए सीटी देते ही वे उतर गये। तीसरे दर्जे के डिब्बों में तो कतई जगह न थी । आप भद्र पुरुषोंकी तरह शान और आरामके साथ तीसरे दर्जेमें सफर नहीं कर सकते । किन्तु बनारससे तो मैंने सिर्फ तीसरे दर्जे में सफर किया। आपके शब्दोंमें कहूँ तो पहली ही डुबकी ऐसी थी जो कठिन थी। उसके बादका परिणाम सब सुखद