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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

रहा। दूसरे मुसाफिरोंकी और मेरी बातचीत खुलकर हुई और कभी-कभी हम गहरे दोस्त भी बने । गरीब मुसाफिरोंके लिए बनारस शायद सबसे बुरा स्टेशन है। रिश्वतका दौरदौरा है। जबतक आप पुलिस सिपाहियोंको घूस देनेके लिए तैयार न हों तबतक अपना टिकट पाना बहुत कठिन है । वे दूसरोंके साथ-साथ मेरे पास भी कई बार आये और बोले कि अगर हमें इनाम ( या रिश्वत ? ) दें तो हम आपके टिकट खरीद देंगे। कई लोगोंने इस प्रस्तावका फायदा उठाया। हममें से जिन्होंने यह मंजूर नहीं किया उन्हें खिड़की खुलने के बाद भी करीब-करीब एक घंटे तक राह देखनी पड़ी। तब कहीं टिकट मिले। यदि हम कानूनके इन संरक्षकों की एक-दो ठोकरोंका उपहार लिये बिना ही वैसा कर पाये तो यह हमारा सौभाग्य ही समझिए । इसके विपरीत मुगलसराय में टिकट मास्टर बहुत सज्जन था । उसने कहा कि मैं राजा और रंकमें भेद नहीं करता ।

हम किसी तरह डिब्बों में भर गये। हालांकि डिब्बों में सूचनाएँ लगी थीं, फिर भी संख्याके सम्बन्धमें कोई रोक-थाम नहीं थी । ऐसी स्थितिमें रातका सफर तीसरे दर्जेके गरीब मुसाफिरोंके लिए भी बहुत असुविधाजनक हो जाता है ।

तीन जगहोंपर अलग-अलग प्लेगकी जाँच की गई। लेकिन मैं नहीं कह सकता कि जाँचमें कोई सख्ती बरती गई हो । मेरा अनुभव बहुत थोड़ा है; किन्तु इन मुसाफिरोंकी भयंकर दशाकी जो तसवीर मैंने कल्पना से खींची थी, वह कुछ हलकी पड़ गई है। कोई सही नतीजा निकालनेके लिए पाँच दिनोंमें मुश्किलसे ही काफ़ी मसाला जुट सकता है। फिर भी, इस अनुभव से मेरा हौंसला बढ़ा और मजबूत हुआ है और पहला मौका आते ही मैं इसे पुनः प्राप्त करूँगा ।

मैं बनारस, आगरा, जयपुर और पालनपुरमें उतरा। सेंट्रल हिन्दू कॉलेज कोई बुरी संस्था नहीं, यद्यपि जल्दीमें किये गये निरीक्षणके आधारपर विश्वासके साथ ऐसा कहना बड़ा कठिन है । "संगमरमर-निर्मित सपना" ताजमहल सचमुच देखने लायक है। जयपुर अद्भुत जगह है । कलकत्ते अजायबघरसे अल्बर्ट अजायबघरकी इमारत बहुत ज्यादा अच्छी है और उसका कला-विभाग स्वतः ही अध्ययनकी चीज है । ऐसा मालूम होता है कि जयपुरी चित्रकला अपने बंगीय अधीक्षकके अधीन खूब फूल-फल रही है।

अब मेरे पत्रका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हिस्सा आता है । पालनपुर में जानेका मेरा एक मात्र उद्देश्य था राज्यके कारबारी[१]से भेंट करना । वे मेरे निजी मित्र हैं। मैं संयोगसे उनसे यह चर्चा कर बैठा कि शायद अगली अप्रैलमें रानडे[२] स्मृति-कोशके लिए चन्दा इकट्ठा करनेमें मैं उनके साथ सम्मिलित हो जाऊँ । राज्यके कारवारी श्री पटवारी एक सच्चे आदमी हैं । वे कहते हैं कि कोश-संग्रहका काम अप्रैलमें शुरू करना भारी गलती होगी, खासकर अगर हम गुजरात में भी करना चाहते हैं । उनका खयाल है कि इससे हमें कमसे-कम १०,००० रुपयेका घाटा होगा। सभी राज्य अकालके असर से कम-ज्यादा कराह रहे हैं। उनकी यह पक्की राय है कि धन-संग्रह अगले दिसम्बर या जनवरी मासमें किया जाये। मैं उनके मन्तव्यको वह जिस लायक हो उसके लिए, आपके सम्मुख रखता हूँ ।

काठियावाड़ के कई हिस्सोंमें प्लेग जोरोंपर है ।

मेहरबानी करके प्रोफेसर रायको मेरी याद दिलायें ।

  1. कार्य अधिकारी।
  2. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४२०।