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टिप्पणियाँ : भारतीयोंकी स्थितिपर

हमारे मित्र इंग्लैंडमें जो कुछ कर सकते हैं, उसके बारेमें मेरा खयाल है, वे फिलहाल अपनी सारी कोशिशें ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर कालोनीकी शिकायतें दूर करवानेमें केन्द्रित करें। इस समय नेटालमें राहत नहीं मिल सकती। आस्ट्रेलिया और कैनडामें कोई भारतीय निवासी नहीं, जो हानि उठाये। वहाँ प्रश्न केवल सिद्धान्तका है। वह निस्सन्देह एक बड़ा प्रश्न है । ट्रान्सवालमें सिद्धान्तका प्रश्न तो है ही, बहुत बड़ा भारतीय स्वार्थ निहित होने के कारण वर्तमान शिकायतें साफ और सच्ची हैं । वहाँ राहत भी मिल सकती है। शर्त एक यही है कि श्री चेम्बरलेन इधर-उधर कहीं कोई वचन न दे बैठे हों और लॉर्ड लैंसडाउनका तो कहना है कि ब्रिटिश भारतीयोंके साथ व्यवहार युद्धके कारणोंमें से एक था।

इस बारे में कोई मतभेद नहीं है। पूर्व भारत संघ (ईस्ट इंडिया असोसिएशन) ने हमारी ओरसे काम किया है और इसी प्रकार लंदन टाइम्स और सर मंचरजीने भी। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि औपनिवेशिक विद्वेषके विरुद्ध आपने जो जिहाद शुरू किया है उसमें आप उनके साथ मिलकर काम करेंगे ।

अगर मैं सुझाव देनेका साहस करूँ तो पसन्द करूँगा कि हमारे मित्र उपनिवेशों के प्रधानमन्त्रियोंसे, जिनकी ताजपोशी-समारोहमें आनेकी आशा है, भेंट करने और उनके साथ स्थितिपर चर्चा करनेका प्रयत्न करें।

इस प्रश्नको उठाते समय वर्तमान युद्धमें नेटाली भारतीयोंके अंशदानका ध्यान रखा जाये । इसके साथ मैं एक कतरन[१] भेजता हूँ जिससे आपको उनके कार्यका कुछ आभास मिल जायेगा । मैंने आपको विस्तारसे और खुलकर सारी बातें लिखनेकी स्वतंत्रता ली है। विश्वास है, इसके लिए आप मुझे कृपापूर्वक क्षमा करेंगे। यदि आपको और अधिक जानकारो की आवश्यकता हो तो उसे आपकी सेवामें प्रस्तुत करते हुए मुझे प्रसन्नता होगी ।

आपका विश्वासपात्र,

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ३९४५) से ।

१७७. टिप्पणियाँ : भारतीयोंकी स्थितिपर

एकान्त विश्वासका

[ राजकोट
माच २७, १९०२ ]

दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतीयोंकी

वर्तमान स्थितिपर टिप्पणियाँ

पत्रोंको दक्षिण आफ्रिकासे यहाँतक पहुँचनेमें बहुत समय लगता है, यह देखते हुए जो कुछ नीचे लिखा गया है वह इस तारीखसे दो महीने पहलेकी स्थितिपर ही लागू होता है । इसे ध्यान में रखना आवश्यक है, क्योंकि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय अब भी एक संकटसे गुजर रहे हैं, जैसा कि नीचेके विवरणसे प्रकट होगा ।

  1. गांधीजीने २७ जनवरी, १९०२ को एक भाषण दिया था । अनुमानतः उसी भाषणके पत्रोंमें छपे विवरणकी एक कतरन ।