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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नेटाल और दोनों नये उपनिवेशोंके भारतीयोंके प्रश्नोंमें फर्क करने की जरूरतपर अधिक जोर नहीं दिया जा सकता। फिलहाल केप उपनिवेशका खयाल छोड़ा जा सकता है। लोकसभा (हाउस ऑफ कॉमन्स) में नेटालके नये उपनिवेशोंके सम्बन्धमें पूछा गया दुहरा प्रश्न, मेरी नम्र सम्मतिमें, कार्य-नीतिकी दृष्टिसे एक बड़ी भूल थी। श्री चेम्बरलेनके इस उत्तरसे कि नेटालमें पहलेसे ही लागू भारतीय-विरोधी कानूनके सम्बन्धमें मैं फिलहाल नेटाल-सरकारको कुछ कहने का इरादा नहीं रखता, और कुछ नहीं तो, उपनिवेशमें एक दुर्भाव उत्पन्न हो गया है और उपनिवेशियोंका भारतीय-विरोधी रुख और भी कड़ा हो गया है। श्री चेम्बरलेनके सुविदित विचारोंको ध्यानमें रखते हुए नेटालका परवाना-कानून केवल उनके और सहानुभूति रखनेवाले मित्रोंके बीच निरन्तर पत्र-व्यवहारका विषय हो सकता है।

अब नेटालके बारेमें। प्रवासी-प्रतिबन्धक अधिनियम और विक्रेता-परवाना अधिनियम ब्रिटिश भारतीयोंको हानि पहुँचानेवाले मुख्य कानून हैं। इनमें दूसरा कानून खास तौरसे हानिकर है, क्योंकि उससे परवाना अधिकारियोंको परवाना देनेके बारेमें असीमित अधिकार मिल जाते हैं और उनके निर्णयोंके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालयमें अपील भी नहीं की जा सकती । नवीनतम सूचना और घटनाओंका असर यह होता है कि उन्हें भारतीयोंके अधिकार कम करने की शक्ति मिल जाती है। नेटाल नागरिक सेवा (सिविल सर्विस) अधिनियमसे नागरिक सेवा निकाय (सिविल सर्विस बोर्ड) को उसके अन्तर्गत उम्मीदवारोंको परीक्षा आदिके विषयमें उपनियम पास करनेका अधिकार मिल जाता है। और संविधान-अधिनियम अपेक्षा रखता है कि सब वर्गीय विधान कानून बननेसे पहले सम्राट्से मंजूर कराये जायें। इसके अलावा यह साफ है कि कानूनके मूल सिद्धान्तोंको बदलने के लिए उसके अन्तर्गत उपनियम नहीं बनाये जा सकते । नेटाल-सरकार सिर्फ एक उपनियम, जोकि नेटाल नागरिक सेवा अधिनियम की ठेठ जड़तक पहुँचता है, प्रकाशित करके वर्गीय कानूनों की मंजूरीके लिए उपनिवेश-मन्त्रीके पास जानेसे बच निकली है।

प्रस्तुत उपनियम किसी भी ऐसे व्यक्तिको, जिसे संसदीय मताधिकारके लिए अयोग्य ठहराया गया हो, अन्य बातोंके साथ-साथ नागरिक सेवाके लिए उम्मीदवार बनने से रोकता है। मताधिकार अपहरण अधिनियम सुविदित है । इसके अन्तर्गत नेटाल-सरकार कहेगी कि भारतीय मताधिकारके उपयोगके लिए अयोग्य ठहराये गये हैं, इसलिए वे नेटाल नागरिक सेवाकी प्रतियोगितामें बैठने के लिए भी अयोग्य हैं। निस्सन्देह बहुत कम भारतीय ऐसे हैं जो उस परीक्षामें बैठते हैं । फिर भी सिद्धान्तका प्रश्न तो है ही । और इसके लिए जो तरीका अपनाया जाता है वह अत्यन्त खतरनाक है। उससे उपनिवेशी भारतीय प्रवासियोंको और अधिक सतानेकी बहुत बड़ी छूट पा जाते हैं। सम्भवतः यह मामला पत्र-व्यवहार द्वारा श्री चेम्बरलेके ध्यान में लाया जाये ।

श्री चेम्बरलेनके उत्तरको ध्यानमें रखते हुए ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर कालोनीके सम्बन्धमें स्थिति अत्यन्त नाजुक है। दोनों उपनिवेशोंमें सभी भारतीय-विरोधी कानून पूरी तरह लागू हैं। उनके अन्तर्गत ट्रान्सवालमें भारतीय पृथक् बस्तियोंके अलावा दूसरी जगह न जमीनकी मिल्कियत ले सकते हैं और न व्यापार कर सकते हैं । उनको काफिर लोगों की भाँति यात्रा-सम्बन्धी और अन्य परवाने रखने पड़ते हैं। ऑरेंज रिवर कालोनीमें वे प्रवेश नहीं कर सकते । हाँ, घरेलू नौकर बनकर अवश्य जा सकते हैं। श्री चेम्बरलेन के उत्तरके अनुसार, इन्हीं कानूनों के बारेमें लॉर्ड मिलनर उन्हें सलाह देनेवाले हैं और परमश्रेष्ठका रुख, भय है, बिलकुल वैसा मैत्रीपूर्ण नहीं रहा, जैसेकी एक समय अपेक्षा की जाती थी। उन्होंने एक अश्वेत परवाना-कानूनकी, जो पुराने ट्रान्सवाल परवाना-कानूनसे अच्छा माना जाता है, घोषणा की है। नया कानून उसीकी जगह