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१८०. पत्र : मंचरजी भावनगरीको

राजकोट
माच ३०, १९०२

सेवामें

सर मंचरजी मेरवानजी भावनगरी, के० सी० आई० ई० एम० आदि
लंदन

प्रिय सर मंचरजी,

आप जानते ही हैं, बम्बईमें आपसे मिलकर मैं कलकता चला गया था और कांग्रेसमें शामिल हुआ। वहाँ यह प्रस्ताव पास किया गया :

दक्षिण आफ्रिकी भारतीय

६. यह महासभा दक्षिण आफ्रिकामें बसे भारतीयोंके साथ, उनके अस्तित्व-सम्बन्धी संघर्षमें, सहानुभूति प्रकट करती है और वहाँके भारतीय-विरोधी कानूनोंकी ओर परमश्रेष्ठ वाइसरायका ध्यान आदरपूर्वक आकर्षित करते हुए भरोसा करती है कि ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवर उपनिवेशमें बसे ब्रिटिश भारतीयोंकी मान-मर्यादाका प्रश्न जब अभी माननीय उपनिवेश-मन्त्रीके विचाराधीन ही है, परमश्रेष्ठ उसका न्यायपूर्ण और योग्य निबटारा करा देनेकी कृपा करेंगे ।

इसके पश्चात् मैं कुछ समय कलकत्तामें ठहरा, ताकि बंगाल व्यापार-संघ ( चेम्बर ऑफ कॉमर्स) के अध्यक्ष माननीय श्री टर्नरकी मार्फत परमश्रेष्ठ वाइसराय महोदयके पास एक शिष्टमंडल ले जानेका प्रयत्न कर सकूं। वाइसरायके पास पहुँचकर श्री टर्नरको जो उत्तर मिला, उसकी नकल[१] साथ भेज रहा हूँ । ऐसे उत्तरको देखते हुए शिष्टमंडल ले जानेका विचार त्याग देना आवश्यक था। मैं अभी राजकोट लौटा हूँ और अब दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंकी वर्तमान स्थिति के सम्बन्धमें कांग्रेसके निर्देशसे तैयार किया वक्तव्य[२] भेज रहा हूँ। मैं आशा करता हूँ कि जबतक यह सारा मामला सन्तोषजनक रूपसे तय नहीं हो जाता तबतक आप इसमें वैसी ही उत्साहपूर्ण दिलचस्पी लेते रहने की कृपा करेंगे, जैसी अबतक लेते आये हैं ।

आपका सच्चा,

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ३९४७ ) से।

  1. यहाँ नहीं दी गई ।
  2. देखिए “टिप्पणियाँ: भारतीयों की स्थितिपर,” मार्च २७, १९०२।