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१८१. पत्र : खान और नाजरको

राजकोट
मार्च ३१, १९०२

प्रिय श्री खान तथा नाज़र,

आपको अरसेसे मुझे पत्र लिखने की फुरसत नहीं मिली, यह बहुत खेदजनक है । अब मैं इसके साथ वाइसराय द्वारा श्री टर्नर[१] को लिखे गये पत्रकी नकल भेज पा रहा हूँ । इंडियासम्पादकके अनुरोधपर कांग्रेसकी ब्रिटिश समितिके लिए तैयार की गई टिप्पणीकी[२] नकल भी साथ में भेजता हूँ । इसकी एक नकल मैंने सर मंचरजीको भी भेजी है। अगर किसी गुमनाम दोस्तने मुझे जोहानिसबर्ग गज़ट और एक अखबार, जिसमें नागरिक सेवा (सिविल सर्विस) के नये नियम थे, न भेजे होते तो टिप्पणीमें ये दो बातें शामिल न की जा सकतीं। मुझे अब भी आशा है कि सर मंचरजी बुलाये जायेंगे। मैं अपने उस अनुरोधको, जो मैंने रंगूनसे अपने पत्र[३] में किया था, फिर दोहराता हूँ कि यदि हमारे लोग मेरे वादे[४] को पूरा कराना चाहते हैं तो यह तबतक कर लेना चाहिए जबतक मेरी योजनाएँ अनिश्चित हैं, यद्यपि मैं जानता हूँ कि मेरे वादेके साथ ऐसी कोई शर्त नहीं है । यदि उसे निकट भविष्यमें पूरा नहीं कराया जाता तो मुझपर बड़ी कृपा होगी कि मुझे उससे मुक्त कर दिया जाये। यदि आपने अबतक बकाया रकम ड्राफ्टसे न भेजी हो तो कृपया यह पत्र पाते ही भेज दें । आप दोनोंके क्या हाल हैं ? पुस्तिकाओंकी प्रतियाँ अबतक आ ही रही हैं। वैसे ही, पत्रोंकी नकलें भी, जो जेम्स मेरे लिए तैयार करनेवाले थे । इस सबके पीछे या तो अविचल निष्ठा है या पैसा बनानेकी कोशिशें । मैं आशा करता हूँ कि यह पैसेके लिए है। आज आये टाइम्सके एक तारमें दक्षिण आफ्रिका बिना ताजके बादशाह[५]की मृत्युकी खबर है। उनके सभी दोषोंके बावजूद उनकी मृत्युपर आँसू रोकना असम्भव है ।

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ३९४९) से ।

  1. देखिए पादटिप्पणी २, पृष्ठ २३५।
  2. “टिप्पणियाँ : भारतीयोंकी स्थितिपर,” मार्च २७, १९०२ ।
  3. यह पत्र उपलब्ध नहीं है ।
  4. दक्षिण आफ्रिका छोड़ते समय गांधीजीने वादा किया था कि यदि दक्षिण आफ्रिकाका भारतीय समाज चाहेगा तो वे एक वर्ष के अन्दर वापस चले जायेंगे । (आत्मकथा, गुजराती, १९५२, पृष्ठ २१७ )
  5. सेसिल रोड्स, जिनकी मृत्यु २२ मार्चको हुई थी ।