पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/२९८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२५८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

दशाको अर्धदासता बतलाया था। जब मजदूरोंको स्वदेश लौटनेके लिए विवश करनेका प्रस्ताव पहले-पहल रखा गया था तब नेटालके विधि-निर्माताओंने जो मत प्रकट किया था, मैं उसे भी यहाँ उद्धृत करनेकी अनुमति चाहता हूँ ।

स्वर्गीय श्री साँडर्सने, जो एक प्रतिष्ठित उपनिवेशी और एक समय नेटाल विधान-परिषद् के सदस्य थे, प्रस्तावकी निम्नलिखित टीका की थी :

यद्यपि आयोगने ऐसा कानून बनानेकी कोई सिफारिश नहीं की कि अगर भारतीय अपने गिरमिटकी अवधि पूरी होनेके बाद नया इकरार करनेको तैयार न हों तो उन्हें भारत लौटनेके लिए बाध्य किया जाये, फिर भी मैं ऐसे किसी भी विचारकी जोरोंसे निन्दा करता हूँ। मेरा पक्का विश्वास है कि आज जो अनेक लोग इस योजनाकी हिमायत कर रहे हैं वे जब समझेंगे कि इसका अर्थ क्या होता है तब वे भी मेरे समान ही जोरोंसे इसे ठुकरा देंगे। भले ही भारतीयोंका आना रोक दीजिए और उसका फल भोगिए, परन्तु ऐसा कुछ करने की कोशिश मत कीजिए जो, मैं साबित कर सकता हूँ, भारी अन्याय है ।

यह इसके सिवा क्या है कि हम अपने अच्छे और बुरे दोनों तरहके नौकरोंका ज्यादासे-ज्यादा लाभ उठा लें और जब उनकी अच्छीसे-अच्छी उम्र हमें फायदा पहुँचाने में कट जाये तब ( अगर हम कर सकें तो, मगर कर नहीं सकते) उन्हें अपने देश लौट जानेके लिए बाध्य करें और इस प्रकार उन्हें अपने पुरस्कारका सुख भोगने देनेसे इनकार कर दें ? और आप उन्हें भेजेंगे कहाँ ? उन्हें उसी भुखमरीकी परिस्थितिको झेलने के लिए फिर क्यों वापस भेजा जाये, जिससे अपनी जवानीके दिनोंमें भागकर वे यहाँ आये थे ? अगर हम शाइलॉकके समान एक पौंड मांस ही चाहते हैं तो, विश्वास रखिए, शाइलॉकका ही प्रतिफल भी हमें भोगना होगा ।

इस उपनिवेशके भूतपूर्व प्रधानमन्त्री स्वर्गीय श्री एस्कम्बने, भारतीय प्रश्नपर विचार करनेके लिए नियुक्त आयोगके सामने गवाही देते हुए कहा था :

जहाँतक अवधि पूरी कर लेनेवाले भारतीयोंका सम्बन्ध है, मैं नहीं समझता कि किसी व्यक्तिको, जबतक वह अपराधी न हो और उस अपराधके लिए उसे देशनिकाला न दिया गया हो, दुनियाके किसी भी भागमें जानेके लिए बाध्य किया जाना चाहिए। मैंने इस प्रश्नके बारेमें बहुत कुछ सुना है । मुझसे बार-बार अपना दृष्टिकोण बदलनेको कहा गया है, परन्तु मैं वैसा नहीं कर सका। एक आदमी यहाँ लाया जाता है। सिद्धान्ततः रजामन्दीसे, व्यवहारतः बहुधा बिना रजामंदीके लाया जाता है। वह अपने जीवनके सर्वश्रेष्ठ पाँच वर्ष खपा देता है। नये सम्बन्ध स्थापित करता है। पुराने सम्बन्धोंको भुला देता है। शायद यहाँ अपना घर बसा लेता है। ऐसी हालतमें मेरे न्याय और अन्यायके विचारसे, उसे वापस नहीं भेजा जा सकता। भारतीयोंसे जो कुछ काम आप ले सकते हैं वह लेकर उन्हें चले जानेका आदेश दें, इससे तो यह कहीं अच्छा होगा कि आप उनको यहाँ लाना ही बिलकुल बन्द कर दें। ऐसा दीखता है कि उपनिवेश या उपनिवेशका एक भाग भारतीयोंको बुलाना तो चाहता है, परन्तु उनके आगमनके परिणामोंसे बचना चाहता है । जहाँतक मैं जानता हूँ, भारतीय हानि पहुँचानेवाले लोग नहीं हैं ।