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दक्षिण आफ्रिका भारतीय

कुछ बाबतोंमें तो वे बहुत परोपकारी हैं । फिर ऐसा कोई कारण तो मेरे सुननेमें कभी नहीं आया, जिससे किसी व्यक्तिको पाँच वर्षतक चाल-चलन अच्छा रखनेपर भी देशनिकाला दे दिया जाये, और इस कार्यको उचित ठहराया जा सके। मैं नहीं समझता कि किसी भारतीयको, उसकी पाँच वर्षकी सेवा समाप्त होनेपर पुलिसकी निगरानीमें रखना चाहिए। हाँ, अगर वह अपराधी वृत्तिका हो तो बात दूसरी है। मैं नहीं जानता कि अरबोंको क्यों पुलिसकी निगरानीमें यूरोपीयोंकी अपेक्षा अधिक रखा जाना चाहिए। कुछ अरबोंके सम्बन्धमें तो यह बात बिलकुल हास्यास्पद है । वे बहुत साधन-सम्पन्न हैं। उनके सम्बन्ध भी बहुत फैले हुए हैं। अगर उनके साथ कारोबार करना दूसरोंकी अपेक्षा ज्यादा फायदेमन्द हो, तो व्यापारमें उनका उपयोग हमेशा किया जाता है ।

मुझे मालूम है कि बादको चुनावके हालातसे दबकर इन माननीय सज्जनने "अपना दृष्टिकोण बदल लिया था।" इन उद्धरणोंका सम्बन्ध निःसन्देह गिरमिटिया लोगोंकी जबरन वापसीसे है, परन्तु व्यक्ति-करका उद्देश्य भी क्योंकि गिरमिटियोंको इस प्रकार वापस आनेके लिए विवश करनेका है, इसलिए ये उसपर भी लागू होते हैं । और, विवादास्पद विधेयकका एक आवश्यक परिणाम यह होगा कि यदि भारतीय गिरमिटिया व्यक्ति कर देने को तैयार न होंगे तो उनके बच्चोंको यहाँसे वापस जाना पड़ेगा ।

आपने और आपके अन्य सहयोगियोंने प्रवासी भारतीयोंकी शिकायतें प्रायः प्रकाशित करके उनको अपना बड़ा आभारी बना लिया है । परन्तु प्रतीत होता है कि जबतक एक-एक भारतीयको नेटालसे निकाल नहीं दिया जायेगा तबतक वहाँके यूरोपीय उपनिवेशी प्रसन्न नहीं होंगे । इस कारण भारतीयोंके लिए यह एक जीवन-मरणका संघर्ष हो गया है। उनके पक्षको पूर्णतया न्याययुक्त मानना पड़ेगा। और भी अनेक परिस्थितियाँ ऐसी हैं जिनसे उनके साथ न्याय होने की आशा है। हमारे वाइसराय बहुत जबरदस्त व्यक्ति हैं । उपनिवेश मन्त्रीने भी बहुधा सहानुभूति प्रकटकी है। क्या आप इन सब शक्तियोंको गतिमान् करनेकी कृपा करेंगे ? यह समय इसके लिए अपरिपक्व नहीं है। शायद जबतक कागज पत्र नेटालसे यहाँ आयेंगे तब-तक यह विधेयक भी मंजूरीके लिए उपनिवेश-कार्यालय पहुँच चुकेगा । इसलिए अब प्रतीक्षा करनेका समय नहीं है । मैं यहाँ इतना और बतला दूं कि उपनिवेशके संविधानके अनुसार समस्त अश्वेत कानूनोंके लिए इंग्लैंडकी सरकारसे मंजूरी मिलना जरूरी है।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
टाइम्स ऑफ इंडिया, १-५-१९०२