पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/३००

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१८६. पत्र : गो० कृ० गोखलेको

राजकोट
अप्रैल २२, १९०२

प्रिय प्रोफेसर गोखले,

क्या मैं आपको नेटालके प्रवासी भारतीयोंके सम्बन्धमें कष्ट दे सकता हूँ ? आपने इस मासकी १० तारीखके टाइम्स ऑफ इंडिया में छपा तार पढ़ा होगा। इसपर मैंने सम्पादकको है,चिट्ठी लिखी है। मैंने इस विषयपर एक प्रार्थनापत्रकी नकल भी भेजी ताकि वे इस प्रश्नका इतिहास समझ सकें। यदि मैं सलाह देनेकी धृष्टता करूँ तो मुझे लगता है, सबसे ज्यादा कारगर उपाय, जिसमें सम्भवतः आप हमारी सहायता कर सकते हैं, यह है कि आप सम्पादकसे मिलें और उनसे इस स्थितिपर बातचीत करें। इस समय कार्रवाईका एक ही तरीका है कि अखबारोंमें जोरोंसे और सूझबूझके साथ आन्दोलन चलाया जाये । नेटालसे कागजात मिलते ही सम्भवतः यह आवश्यक होगा कि श्री टर्नरको उनके वादेकी याद दिलाई जाये और वाइसरायको एक प्रातिनिधिक प्रार्थनापत्र भेजनेमें साथ देनेके लिए कहा जाये। मुझे बहुत दुःख है, मैं आपको उल्लिखित प्रार्थनापत्रकी नकल भी नहीं भेज सकता; किन्तु यदि प्रेसिडेन्सी असोसिएशनने समय-समयपर प्रेषित पत्रोंकी फाइल रखी होगी तो आपको वहाँसे नकल मिल जायेगी । मैं इसके बारेमें श्री मुंशीको लिख रहा हूँ। आशा है मैं आपके समयपर अनुचित दखल नहीं दे रहा हूँ ।

आपका सच्चा,
मो० क० गांधी

मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (जी० एन० ३७२०) से ।


१८७. पत्र : जॉ० रॉबिन्सनको

राजकोट
अप्रैल २७, १९०२

प्रिय सर जॉन,

आपके ११ मार्चके कृपापूर्ण और सुखद पत्रके लिए, तथा फोटोग्राफ के लिए भी, जिसे मैं बहुत ही मूल्यवान समझूँगा, धन्यवाद।

प्रोफेसर मैक्समूलरकी पुस्तक आपने पसन्द की यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई। मेरे खयालसे, साम्राज्य-परिवारकी पश्चिमी और पूर्वी शाखाओंके बीच सद्भाव बढ़ानेवाली इससे अच्छी दूसरी कोई बात नहीं हो सकती कि वे एक-दूसरेकी अच्छीसे-अच्छी बातोंको जानें।

आपने मेरे स्वास्थ्यके बारेमें पूछा, इसके लिए धन्यवाद । उसमें बराबर सुधार होता जान पड़ रहा है।

भारतके आम लोगोंकी बढ़ती हुई गरीबीके बारेमें कुछ वक्ता और लेखक जो कहते हैं, मुझे भय है, उसमें बहुत कुछ सत्य है । कुछ वर्ग निश्चय ही अधिक समृद्ध हो गये हैं, लेकिन