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१८९. टिप्पणियाँ : भारतीय प्रश्नपर

राजकोट
मई ६, १९०२

इस चर्चामें केवल नेटाल और दो नये उपनिवेशोंसे सम्बद्ध भारतीय प्रश्नपर ही विचार किया गया है।

नेटाल

नेटाल एक स्वशासित उपनिवेश है। उसके संविधानके अनुसार, रंग-भेदके सब कानूनों-पर अमल आरम्भ होनेसे पहले, महामहिम सम्राट्की मंजूरी मिल जाना आवश्यक है। संविधानका एक साधारण नियम यह भी है कि उपनिवेशके विधानमण्डल द्वारा पास किये हुए किसी भी कानूनको, पास होनेके पश्चात् दो वर्ष के भीतर, नामंजूर किया जा सकता है ।

इस उपनिवेशमें गोरे लोगोंकी आबादी ६०,००० है, और इतनी ही संख्यामें वहाँ ब्रिटिश भारतीय बसे हुए हैं । वहाँके देशी लोग, जूलू, खासे अच्छे लोग हैं, परन्तु वे बड़े आलसी हैं। उनसे लगातार ६ महीने तक भी काम लेना कठिन है। इसलिए जब वहाँ बसे हुए गोरे स्थायी और भरोसेके मजदूर मिलनेकी समस्याके कारण परेशान थे और उपनिवेशका दिवाला निकला जा रहा था, तब वहाँके विधानमण्डलने भारतीय मजदूरोंका सहारा लिया। कुछ शर्तोंकी बातचीतके बाद भारत सरकारने गिरमिटिया भारतीयोंको नेटाल ले जानेकी इजाजत दे दी। इस बातको कोई ४० वर्ष हो गये। धीरे-धीरे भारतीय मजदूरोंकी माँग बढ़ती गई। उपनिवेशकी समृद्धि भी उसी हिसाबसे बढ़ने लगी। इन मजदूरोंके गिरमिटकी शर्त यह होती थी कि जिस किसी मालिकके सुपुर्द इन्हें कर दिया जाये उसकी सेवा ये ५ वर्षतक करें, और वह इन्हें पहले वर्ष तो १० शिलिंग मासिक मजदूरी दे, और उसके बाद प्रतिवर्ष १ शिलिंग वार्षिक बढ़ाता जाये। इस इकरारनामेमें मुफ्त निवास और चिकित्सा और इकरारनामेकी समाप्तिपर मुफ्त वापसीकी भी शर्तें शामिल थीं ।

मालिकों और मजदूरोंके सम्बन्धोंका नियन्त्रण एक अति कठोर नियमावलीके द्वारा किया जाता है। उसके अनुसार मजदूरोंपर कुछ बहुत सख्त पाबन्दियाँ लागू हो जाती हैं, और उनका उल्लंघन करना फौजदारी अपराध होता है ।

स्वभावतः, इन मजदूरोंके पीछे स्वतन्त्र भारतीय भी वहाँ पहुँचे, अर्थात् वे अपना मार्गव्यय खुद देकर व्यापारादि करनेके लिए उपनिवेशमें गये। गिरमिटिया भारतीयोंमें से भी अधिकतरने स्वतन्त्र हो जाने के पश्चात् मुफ्त वापस लौट आने की शर्तका लाभ उठानेके बदले उपनिवेशमें ही रहकर कारीगर, छोटे व्यापारी और किसान आदि बन जाना पसन्द किया । इस कारण गोरे लोग उनसे तीव्र व्यापारिक ईर्ष्या करने लगे; और उन्होंने आसानीसे उनकी बड़ी-बड़ी बुराइयोंको ढूंढ लिया, जैसे कि घिचपिच ढंगसे तंग बस्तियोंमें रहना, आबादियोंको मैला रखना और कुछ असंस्कृत रीति-रिवाज या अन्धविश्वास । इनका बखान खूब बढ़ा-चढ़ाकर किया जाता और अखबारोंमें इनकी चर्चा कर-करके हमें खूब नुकसान पहुँचाया जाता था । यहाँतक कि, आम लोगोंमें भी भारतीय प्रवासियोंके विरुद्ध भ्रम फैल गया। प्रवासी भारतीय अशिक्षित थे । उनका ऐसा कोई मित्र भी नहीं था जो उनका पक्ष लोगोंके सामने पेश करता । इस कारण इस भ्रमका निवारण किसीने नहीं किया। १८९४ से पहलेतक नेटाल सम्राट्