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१९०. पत्र : अब्दुल कादरको[१]

राजकोट
मई ७, १९०२

प्रिय श्री अब्दुल कादर,

श्री रुस्तमजी और मियाखाँको लिखा गुजराती पत्र[२] भेज रहा हूँ । आशा करता हूँ आप इसे ठीक-ठीक पढ़वा लेंगे और समझ लेंगे। मुझे इसमें आगे और कुछ जोड़ने की जरूरत नहीं । आपने मेरे किसी भी पत्रको पहुँच नहीं दी। मेरे बिलकी बाकी रकमका ड्राफ्ट भेजें तो आपको धन्यवाद दूंगा । मुझे रुपयेकी सख्त जरूरत है।

आपका सच्चा,

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ३९६४) से ।

१९१. नेटालके भारतीय

राजकोट
मई १०, १९०२

सेवामें

सम्पादक
टाइम्स ऑफ़ इंडिया
बम्बई

महोदय,

आपके १ तारीखके अंकमें नेटालके ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिके विषयमें मेरा जो पत्र छपा है, उसके सम्बन्धमें मुझे अब नेटालसे वे अखबार मिल गये हैं जिनमें तत्सम्बन्धी विधेयकका पाठ दिया गया है। मैं उसे नीचे देता हूँ :

भारतीय प्रवास संशोधन अधिनियममें संशोधनके लिए विधेयक, जिसके द्वारा यह विधान किया जाता है कि प्रत्येक भारतीय बालकको वयस्क (बालक १६ वर्ष और बालिका १३ वर्ष) हो जानेपर लाजिमी होगा (क) भारत लौटना या ( ख ) नेटालमें बादके अधिनियमों द्वारा संशोधित १८९५ के अधिनियम सं० १७ के अनुसार गिरमिटके अन्तर्गत रहना, जो उसी प्रकार दोबारा जारी करवाया जा सकता है, या (ग) इस उपनिवेशमें रहनेके लिए वर्ष प्रतिवर्ष १८९५ के अधिनियम सं० १७ की धारा ६ के अनुसार परवाना लेना ।

परन्तु यदि ऐसा कोई बालक अपने पिताका पहला या पीछेका गिरमिट पूरा होनेसे पहले ही वयस्कता प्राप्त कर लेगा तो उस गिरमिटके पूरा होनेतक इस धारापर अमल रोक दिया जायेगा। जिस बालकका पिता मर गया होगा या नेटालमें नहीं

  1. डर्बनके एक प्रमुख व्यापारी, जो १८९४ में नेटाल भारतीय कांग्रेस के उपाध्यक्ष तथा १८९९ में अध्यक्ष थे ।
  2. उपलब्ध नहीं है ।