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नेटालके भारतीय

होगा, या जिसकी माता उसके जन्मके समय अविवाहित होगी, उसके मामलेमें पिताके गिरमिटपर लागू ऊपरकी व्यवस्था उसकी माताके गिरमिटपर लागू होगी। जिस बालकपर यह अधिनियम लागू होगा वह भारत जानेका मुफ्त मार्ग-व्यय पानेका अधिकारी होगा, जिससे वह अपने पिताके (या यदि वैसी स्थिति हो तो अपनी माताके) पहले या पिछले गिरमिटके पूरे हो जानेपर भारत लौट सके। परन्तु मुफ्त मार्ग-व्यय पानेका यह अधिकार नष्ट हो जायेगा, यदि (क) पिता अथवा वैसी स्थिति हो तो माताका गिरमिट, बालककी अवयस्क अवस्थामें ही समाप्त हो जाये और वह न तो भारत लौटे और न १८९५ के अधिनियम सं० १७ के अनुसार अपना गिरमिट फिर जारी करवाये, (ख) बालक वयस्क हो जानेपर अथवा इस अधिनियमके अनुसार किया हुआ गिरमिट पूरा हो जानेपर भारत लौट जानेके लिए उपलब्ध प्रथम अवसरका लाभ उठाकर भारत न लौटे। जो लोग इस अधिनियमके अमलमें आनेसे पहले ही वयस्कता प्राप्त कर चुके होंगे उनपर यह अधिनियम लागू नहीं होगा । लेकिन इस बातसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बालक माता-पिताके नेटाल पहुँचनेके बाद उत्पन्न हुआ या पहले ।

यदि यह जानकर किसीको कुछ सन्तोष हो सकता हो तो वह जान ले कि यह विधेयक गोदके बालकोंपर लागू नहीं होता । तथापि, इसपर जितना विचार करें यह उतना ही अन्यायपूर्ण लगता है ।

एक ध्यान देनेकी बात यह है कि जिन बालकोंने उपनिवेशमें प्रारम्भिक शिक्षण प्राप्त कर लिया हो उनसे भी इस विधेयकमें, हृष्ट-पुष्ट खेत मजदूरोंके समान, परन्तु बाजार-दरसे भी कम मजदूरीपर, 'सूर्योदयसे सूर्यास्ततक' मशक्कत करनेकी आशा रखी गई है; और तथाकथित नियम विरुद्ध संयोग द्वारा उत्पन्न हुए बालक भी इस विधेयकमें शामिल कर लिये गये हैं। इसका फल यह होगा जिस गिरमिटिया स्त्रीने अपने धार्मिक मत या रीति-रिवाजोंके अनुसार किसी स्वतन्त्र भारतीयसे विवाह कर लिया होगा, परन्तु जिसका विवाह पंजीकृत (रजिस्टर्ड) न होनेके कारण उपनिवेशमें कानून सम्मत न माना गया होगा, उसके बालकोंपर भी गिरमिटिया भारतीयोंकी ही पाबन्दियाँ लागू हो जायेंगी । परन्तु जिस कानूनका आधारभूत सिद्धान्त ही उस न्यायके साधारण नियमों तकसे असंगत हो, जिसे कि ब्रिटिश संविधानकी परम्पराओंमें पालित-पोषित लोग न्याय समझते हैं, उसपर विस्तारसे विचार करना समयको नष्ट करना है ।

जिस डाकसे इस विधेयकको प्रति मुझे मिली है उसीसे यह समाचार भी मिला है कि आगामी जूनमें सरकार स्कूलोंमें पढ़नेवाले सब यूरोपीय बालकोंको जो ताजपोशी स्मृति-पदक देगी, वह उपनिवेशके स्कूलोंमें पढ़नेवाले भारतीय बालकोंको नहीं दिया जायेगा । निश्चय ही, भारतीय बालकोंका यह बहिष्कार आर्थिक कारणोंसे नहीं किया जा रहा है, क्योंकि मेरा खयाल है कि यूरोपीय बालकोंकी संख्या जहाँ २०,००० है वहाँ भारतीय बालक लगभग ३,००० ही हैं । स्पष्ट है कि ताजपोशीके उत्सवका दिन भारतीय बालकोंको यथासम्भव अधिक स्पष्टतासे यह अनुभव करवाकर मनाया जायेगा कि इस उपनिवेशको सरकारकी दृष्टिमें खालके रंगका गेहुँआ होना हीनता और पतनको पक्की निशानी है ।

मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
टाइम्स ऑफ़ इंडिया, १४-५-१९०२