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१९२. पत्र : श्री दिनशा वाछाको

राजकोट
रविवार, १८ मई, १९०२

प्रिय श्री वाछा,

आपका पत्र मिला। आपने जिस वाक्यका उल्लेख किया है वह, मैं सोचता हूँ, ज्योंकात्यों रह सकता है। किन्तु आपको अनावश्यक लगा है--- शायद इस खयालसे कि भाषाकी तनिक-सी अत्युक्ति भी बचायी जानी चाहिए। इसलिए मैं उसके स्थानमें यह सुझाता हूँ : "अब साफ तौरपर यह प्रयत्न किया जा रहा है कि गिरमिटिया भारतीयोंके बच्चोंपर कृत्रिम वयस्कता प्राप्त करते ही कर लगाकर यथासम्भव वही रकम प्राप्त की जाये ।" मेरा खयाल है, आप प्रार्थनापत्र[१] छाप रहे हैं। यदि ऐसा हो तो, आशा है, मुझे कुछ प्रतियाँ भेज देंगे ।

आपका सच्चा,

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ३९६७) से ।

१९३. पत्र : ईस्ट इंडिया असोसिएशनको

राजकोट
मई १८, १९०२

सेवामें

श्री मन्त्री,
ईस्ट इंडिया असोसिएशन
वेस्टमिन्स्टर
लंदन

प्रिय महोदय,

संलग्न-पत्र[२] अपनी कहानी आप कहेंगे। पूर्व भारत संघ (ईस्ट इंडिया असोसिएशन) ने दक्षिण आफ्रिकामें बसे ब्रिटिश भारतीयोंके मामलेकी वकालत करके उन्हें अत्यन्त अनुगृहीत किया है। उसने पहले ही माँग की है कि यदि आम निर्योग्यताओंके सम्बन्धमें दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंकी शिकायतें दूर नहीं की जातीं तो भारतसे गिरमिटिया लोगोंका देशान्तरण बन्द कर दिया जाये। यह माँग अत्यन्त उपयुक्त होगी, क्योंकि संलग्न पत्रमें उल्लिखित विधेयकका सीधा प्रभाव गिरमिटिया लोगोंके हितोंपर पड़ता है । मेरा खयाल है कि यहाँका प्रेसिडेंसी

  1. “ प्रार्थनापत्र : लॉर्ड हैमिल्टनको," जून ५, १९०२ ।
  2. स्पष्टतः साथके प्रलेख उनके उन दो पत्रोंकी नकलें थीं, जो उन्होंने अप्रैल २२ और मई १०, १९०२ को प्रवासी विधेयकपर टाइम्स ऑफ इंडिया को लिखे थे।