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नेटालके भारतीय

आय बढ़ी, मजदूरी और वेतनमें भी वृद्धि हुई ।" जिन्होंने इस तरह अपने जीवनके सर्वोत्तम पाँच वर्ष उपनिवेशको दे दिये और वह भी मजदूरीकी उस दरपर, जो प्रचलित दरसे बहुत कम थी, उनके प्रति यह व्यवहार न्यायपूर्ण और उचित नहीं हो सकता । उपनिवेशमें भी एक सज्जन थे भूतपूर्व महान्यायवादी (अटर्नी जनरल) श्री मोरकॉम, के० सी०, जिन्होंने विधेयकका विरोध किया था, यद्यपि वह नक्कारखानेमें तूतीकी आवाजमात्र था । उनके शब्द थे :

जो भारतीय बच्चे उपनिवेशमें उत्पन्न हुए हैं, उनको निर्वासित होना पड़ेगा, या जीवनभरके लिए गिरमिटिया बनना पड़ेगा, या प्रतिवर्ष ३ पौंड परवाना-शुल्क देना होगा। उपनिवेशमें मजदूरीके लिए भारतीयोंकी जैसी बाढ़ आई है, उससे कई अवांछनीय स्थितियाँ पैदा होनी सम्भव हैं; किन्तु सदनके लिए न्याय या कानूनी औचित्यकी उपेक्षा किये बिना इन बच्चोंको, जिनको इस उपनिवेशमें पैदा होनेका दुर्भाग्य मिला है, निर्वासित करना असम्भव है ।

जबतक नेटालमें श्री मोरकॉम जैसे व्यक्ति हैं, जो विद्वेषसे अन्धे नहीं बने, तबतक वहाँ कभी-न-कभी न्याय प्राप्तिकी आशा बनी ही रहेगी। किन्तु जबतक वहाँ न्याय और औचित्यके पक्षमें लोकमत नहीं बनता तबतक यह बहुत आवश्यक है कि भारतीय जनता जागृत रखी जाये और ब्रिटेनकी सरकार भारतीयोंके साथ न्याय कराने का आग्रह करे ।

श्री मोरकॉमके शब्दोंमें, “विचार यह प्रतीत होता है कि इस प्रणालीके सभी लाभ उठा लिये जायें और इसकी हानियाँ भुला दी जायें।" लेकिन, नेटाल विधानमण्डलके एक दूसरे सदस्य के शब्दोंमें, "भारतीयोंसे जितना काम लिया जा सके उतना लेकर उन्हें भाग जानेका आदेश देनेकी अपेक्षा क्या यह कहीं ज्यादा अच्छा न होगा कि आगेसे उनका यहाँ आना बिलकुल रोक दिया जाये ?"

यह ऐसा प्रश्न है जिसपर दो रायें न तो हैं और न हो सकती हैं। क्या मैं आपसे अर्ज कर सकता हूँ कि आप प्रस्तावित अन्यायके विरुद्ध अपनी जोरदार आवाज़ उठायें ? मैं यह भी कह दूं कि यह विधेयक उपनिवेशके कानूनका रूप लेनेसे पहले ब्रिटिश सरकारकी मंजूरीके लिए खास तौरसे सुरक्षित रखा गया है ।

आपका, आदि,
मो० क० गांधी

[ अंग्रेजीसे ]
इंग्लिशमैन. २६-५-१९०२