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१९९. पत्र : मदनजीतको[१]

राजकोट
[ जून ३, १९०२ ][२]

रा० रा० भाई मदनजीत,

जूनागढ़ जानेका मौका मिलनेसे मैं आपके भाइयों, सास और सालेसे मिल आया हूँ । उन्हें जहाँतक बन सका समझाया है और शान्त किया है। आपकी सास शिकायत करती थीं कि आप पत्र नहीं लिखते। यह ठीक नहीं है। वक्त-वक्तपर चिट्ठी-पत्री लिखते रहना चाहिए। इससे संतोष रहता है और दिलासा मिलता है । बहुत करके लाभशंकर आपकी बहूको लेकर आयेगा और जो आपकी सास इस तरह भेजनेकी हाँ एकदम न करें तो वह अकेला आयेगा; और काम सँभाल सके ऐसी स्थितिमें आनेपर आप यहाँ आकर बहूको ले जा सकते हैं। आपकी सास किसी और तरीकेसे भेजनेमें बहुत आनाकानी करती जान पड़ती हैं। भाई नाजरको आज पत्र लिखा है सो पढ़ लेना । उससे समझमें आ जायेगा कि मुझे पैसेकी कितनी जरूरत होगी। आपकी तरफसे नियमित पैसा आना शुरू हो तभी मुझसे बम्बई रहते बनेगा, ऐसा हाल जान पड़ता है। फकत ।

दफ्तरी गुजराती प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ३९५८ ) से ।

२००. प्रार्थनापत्र : लॉर्ड हैमिल्टनको[३]

बम्बई प्रेसिडेंसी असोसिएशन
अपोलो बन्दर,
बम्बई
जून ५, १९०२

सेवामें

परम माननीय लॉर्ड जॉर्ज हैमिल्टन
सम्राट्के मुख्य भारत-मन्त्री, सपरिषद
लंदन

महानुभाव,

बम्बई प्रेसिडेंसी असोसिएशनकी परिषदके निर्देशसे हम श्रीमानका ध्यान एक विधेयककी ओर आकर्षित करना चाहते हैं, जिसका दूसरा वाचन नेटाल विधानसभामें हो चुका है। उसका नाम है : "भारतीय प्रवास संशोधन कानून संशोधक विधेयक ।"

  1. मदनजीत व्यावहारिक, दक्षिण आफ्रिकामें गांधीजीके सहयोगी । इन्होंने गांधीजीके सुझावपर १८९८ में डर्बनमें 'इंटरनेशनल प्रिंटिंग प्रेस' शुरू किया । १९०३ में गांधीजीकी मददसे इंडियन ओपिनियन निकाला, जिसे १९०४ में गांधीजीने ले लिया ।
  2. पत्रकी दफ्तरी नकलमें तारीख नहीं है; किन्तु श्री नाजर तथा खानको उसी दिन पत्र लिखा ऐसा उल्लेख है । उस पत्रसे यह तारीख निश्चित होती है ।
  3. इसकी एक अग्रिम प्रति इंडियाको भेज दी गई थी । उसपर तारीख २४ मई पड़ी थी। किन्तु भारत-मन्त्री को भेजने के लिए यह आवेदन बम्बई- सरकारके सम्मुख ५ जूनको पेश किया गया था ।