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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

व्यवहारतः विधेयकका अभिप्राय उन ब्रिटिश भारतीयोंके बालिग बच्चों (१६ वर्षके लड़कों और १३ वर्षकी लड़कियों) को [ अपने अन्तर्गत ] लाना है जो १८८५ के अधिनियम १७ के अनुसार गिरमिटमें बँधे हैं। उससे वे भी अपने माता-पिताओंके समान इनमें से किसी भी मार्गका अवलम्बन करने के लिए बाध्य होंगे :

(क) उपनिवेशके खर्चसे भारत लौट जायें, या

(ख) गिरमिटिया मजदूरीमें शामिल हो जायें, या

(ग) ३ पौंड वार्षिक व्यक्ति कर दें ।

यह कहना कठिन है कि विधेयक अन्ततः दोनों सदनोंमें मंजूर होगा और स्वीकृतिके लिए औपनिवेशिक कार्यालयमें पहुँचेगा या नहीं। किन्तु दक्षिण आफ्रिकासे डाकका यहाँ प्राप्त होना अनिश्चित होनेके कारण परिषद उचित समझती है कि समयसे कुछ पहले ही नेटाल सरकारके ब्रिटिश भारतीयोंकी स्वतंत्रतापर कठोर प्रतिबन्ध लगानेके नये प्रयत्नोंके विरुद्ध अपना यह विनम्र विरोधपत्र पेश कर दे ।

श्रीमान जानते हैं कि सन् १८९४ में लॉर्ड एलगिनने, जो तब वाइसराय थे, अत्यन्त अनिच्छापूर्वक गिरमिटिया भारतीयोंपर ३ पौंड कर लगाने की अनुमति दी थी। इस करको आलंकारिक भाषामें "उपनिवेशमें रहनेके पास या परवानेका शुल्क" कहा जाता है । यद्यपि नेटाल सरकार मूलतः २५ पौंड कर लगाने की अनुमति लेना चाहती थी, किन्तु यह स्वीकार कर लिया गया है कि यह कर ही बहुत कठोर है ।

अब, स्पष्टतः, यह प्रयत्न किया जा रहा है कि गिरमिटिया मजदूरोंके बच्चोंपर उक्त कृत्रिम वयस्कता प्राप्त करते ही कर लगाकर यथासम्भव वही रकम वसूल कर ली जाये ।

परिषदको ज्ञात हुआ है कि कानून द्वारा भारतीय आबादीके प्रवासको नियन्त्रित करनेका उद्देश्य विदेशियोंकी बसावटको प्रोत्साहित करना और ऐसे अधिवासियोंको संरक्षण देना है। नेटाली विधान-मण्डलके सदस्योंके शब्दोंमें, यदि भारतीय मजदूर अपने जीवनके सर्वोत्तम पाँच वर्ष उपनिवेशमें देनेके पश्चात् भारतको लौटने के लिए बाध्य किये जायेंगे तो यह उद्देश्य स्पष्टतः असफल हो जायेगा ।

जिनका पालन-पोषण भारतमें हुआ है उन्हींको यदि भारत लौटनेसे कठिनाई होती है तो उनको कितनी कठिनाई न होगी जो उपनिवेशमें दूध-पीते बच्चोंके रूपमें गये थे, या वहीं उत्पन्न हुए थे। विधेयकके उद्देश्यके सम्बन्धमें कोई भ्रम नहीं हो सकता। यह कर राजस्वमें वृद्धिके उद्देश्यसे नहीं लगाया जा रहा है। इसका उद्देश्य यह है कि यह इतना कठोर कर दिया जाये जिससे प्रस्तावित कानूनके क्षेत्रमें जो भी आते हैं वे भारत लौटनेके लिए बाध्य हो जायें ।

वस्तुतः नेटाली यूरोपीय तो ऐसा कानून बनानेका प्रयत्न कर रहे हैं जिससे ये गिरमिट भारत वापस पहुँचनेपर समाप्त हों। अभी हालके तारोंके अनुसार उपनिवेशके प्रधानमन्त्री कहा है कि उपनिवेशमें भारतीयोंका आना बन्द करनेसे नेटालके उद्योग-धन्धे ठप्प हो जायेंगे । परिषद आदरपूर्वक पूछती है कि जो लोग उपनिवेशकी सुख-समृद्धिके लिए इतने अपरिहार्य हैं और जिन्होंने उसको वर्तमान अवस्था प्राप्त करनेमें ठोस सहायता दी है, उनको ही क्या विशेष करके लिए छाँटा जायेगा ?

इसके अतिरिक्त परिषद महानुभावका ध्यान इस तथ्यकी ओर आकर्षित करती है कि ये गिरमिटिया मजदूर ही तत्काल सेवाकी आवश्यकता पड़नेपर स्वेच्छापूर्वक डोली (स्ट्रेचर)-वाहकोंके रूपमें सैनिक अधिकारियोंकी सहायता करनेके लिए आगे आये थे । नेटाली भारतीयोंके