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२०१. पत्रः मेहताको[१]

[ राजकोट
जुन ३०, १९०२ के पूर्व ][२]

प्रिय मेहता,

मुझे आपके दो पत्र मिले। मैंने किस तरहका काम हाथमें लिया है सो साथके पत्रसे विदित होगा[३] । मैं देखता हूँ, इन किताबोंको खपाना बहुत ही कठिन है, लेकिन हमारा मुख्य उद्देश्य इनकी जानकारी लोगोंको देना है; इसलिए मैंने आधा दर्जन प्लेग स्वयंसेवकोंको इनकी प्रतियाँ भेज दी हैं । मैं अपना वजन करानेका प्रयत्न करूँगा । मैं यह तो नहीं कह सकता कि अब अपने आपमें काफी ताकत महसूस करता हूँ, किन्तु जिन लोगोंने मुझे नेटालमें देखा था और अब यहाँ देखा है, उन्हें मेरे स्वास्थ्य में काफी सुधार नजर आता है। मुझे हफ्ते में एक-दो बार 'फ्रूट सॉल्ट' लेना पड़ता है। मैं जितनी सम्भव हो उतनी कसरत करनेकी कोशिश करता हूँ, लेकिन गर्मी इसमें रुकावट डालती है ।

यदि उमियाशंकर[४] को टेकनिकल इन्स्टिट्यूटमें भरती होना है, तो मैं जानता हूँ कि उसके लिए मैट्रिक पास करना जरूरी नहीं है। मेरी रायमें अगर आप खर्च देनेके लिए तैयार हों तो यह खयाल बहुत ही अच्छा है । वह संस्थामें जितनी जल्दी दाखिला ले ले उतना ही अच्छा। इंजीनियरिंग या कपड़ेका काम सीखनेके लिए शुल्क ३६ रुपये सालाना है। दूसरा सत्र हर साल जूनके आखिरी सोमवारको शुरू होता है। शिक्षा-योग्यता छठे दर्जेतककी जरूरी है। यदि आप उमियाशंकरको मैट्रिक कराना भी चाहें, तो मुझे निश्चय है वह पास नहीं होगा । उसका मन उसमें नहीं है । मेरी समझमें वह काफी मेहनती भी नहीं है। और उसे थोड़ा टोंचते रहने की जरूरत हो सकती है । यहाँके टेकनिकल स्कूलमें बहुत पढ़ाई नहीं हो रही है। तार-शिक्षाकी कक्षा बन्द कर दी गई है, इसलिए वह इस समय सिर्फ टाइप करना ही सीख रहा है । बहीखाता सिखानेका प्रबंध भी बड़ा ढीला है ।

दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ३९५९) से ।

  1. रंगूनके डॉ० प्राणजीवन मेहता : लन्दन के छात्रजीवनसे गांधीजीके मित्र ।
  2. इस दफ्तरी प्रतिमें तारीख नहीं है, किन्तु “ जूनके अंतिम सोमवार" ( अर्थात ३० तारीख) को टेकनिकल इंस्टिट्यूटके दूसरे सत्रके आरम्भका उल्लेख इस अनुमानकी पुष्टि करता है ।
  3. साथका पत्र उपलब्ध नहीं है । उस समय गांधीजी प्लेग समितिके मन्त्री थे; देखिए “ पत्र : गो० कृ० गोखलेको," मई १, १९०२ ।
  4. डॉ. प्राणजीवन मेहताका भतीजा ।