२०२. पत्र : दलपतराम भवानजी शुक्लको
आगाखाँ बिल्डिंग, दूसरी मंजिल
उच्च न्यायालय के सामने
बम्बई, फोर्ट
[ जुलाई ११, १९०२ के बाद ][१]
थरादके ठाकुर मुझसे अभी मिले हैं। मैं कागजोंको एक सरसरी निगाहसे देख गया हूँ । मुझे याद है आपने सम्राट्की न्याय परिषद (प्रिवी कौंसिल)में अपीलकी सलाह दी थी; किन्तु किस फैसलेके खिलाफ ? पोलिटिकल सुपरिटेंडेंटके फैसलेके खिलाफ तो नहीं ! और, मैं नहीं समझता, बम्बई-सरकारके फैसलेके खिलाफ अपील हो सकती है। ठाकुर मेहताकी सलाह लेनेके लिए उत्सुक हैं। आज दोपहरको मैं मेहतासे मिलनेका विचार कर रहा हूँ ।
मैंने आखिर उक्त पतेपर दफ्तर ले लिया है। कृपया उत्तर यहीं भेजें। एक कमरेके २० रुपये मासिक देने पड़ेंगे। भारत-सरकारको अपील भेजने की अवधि क्या है ?[२]
हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी
मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० २३२५) से ।
२०३. पत्र : गो० कृ० गोखलेको
आगाखाँ बिल्डिंग, दूसरी मंजिल
उच्च न्यायालयके सामने
बम्बई, फोर्ट
अगस्त १, १९०२
मेरा खयाल है, मैंने आपको बता दिया है कि यदि मुझे नेटालसे प्रतीक्षित धन मिल गया तो मैं बम्बईमें जम जाऊँगा। तीन हजारसे ऊपर रुपये मिल चुके हैं, इसलिए मैंने यहाँ कार्यालय खोल दिया है और यहाँ एक साल रहकर देखना चाहता हूँ ।
मेरे यह आश्वासन दुहरानेकी जरूरत नहीं कि मैं सदैव आपके आज्ञाधीन हूँ । आशा करता हूँ, आपका शरीर स्वास्थ्य अच्छा होगा ।
आपका सच्चा,
मो० क० गांधी
मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (जी० एन० ३७१७ ) से ।