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२०४. पत्र : देवचन्द पारेखको[१]

उच्च न्यायालय के सामने
बम्बई, फोर्ट
अगस्त ६, १९०२

प्रिय देवचन्दभाई,

मैं यह सुझाव नहीं देना चाहता था कि श्री इन्द्रजीतको कोई जिम्मेदारीका काम दे दिया जाये। उनकी इच्छा यह है कि आपके पैसा पानेवाले सहयोगीके रहते हुए ही सहायक वकीलका काम करें। मुझे लगता है, वे सिर्फ इतना कह सकनेका मौका चाहते हैं कि उन्होंने सम्राट्की न्याय परिषद (प्रिवी कौंसिल)के एक मुकदमेमें छोटे वकीलकी हैसियतसे पैरवी की है । शायद वे कुछ अमली ज्ञान भी प्राप्त करना चाहते हैं ।

मैंने पेन, गिल्बर्ट, सयानी व मूस कम्पनीसे एक कमरा कार्यालयके लिए और गिरगांव बैंक रोडपर केशवजी तुलसीदासके बंगलेका एक भाग रहनेके लिए ले लिया है। अभी तक तो मैंने इतनी ही प्रगति की है।

जब मैं राजकोट था, शुक्लने मुझे मसविदा बनानेका सुखकर काम भेजा था। वह मैंने अभी समाप्त किया है । अब मैं उच्च न्यायालयमें मटरगश्तीके लिए मुक्त हो गया हूँ। इससे सॉलिसिटर जान सकेंगे कि वे मुकदमा बैरिस्टरोंकी पंक्तिमें एककी बढ़ती हो गई है।

मेहताके पास जब आशिष लेने गया तो उन्होंने मुझे दुराशिष ही दी जो, उनके कहनेके अनुसार, शुभाशिष सिद्ध हो सकती है । मेरी आशाओंके विपरीत उनका खयाल है कि मैंने नेटालमें जो थोड़ी-सी बचत की थी, उसे अपनी मूर्खतासे बम्बईमें बरबाद कर दूंगा ।

वाछासे मैं अभीतक नहीं मिल सका हूँ । गोखले यहाँ हैं नहीं। जिन सॉलिसिटरोंसे मैं मिला हूँ वे कहते हैं कि मुझे बहुत समयतक प्रतीक्षा करनी होगी, तब वे मुझे कुछ राय दे सकेंगे। प्रधान न्यायाधीश नये बैरिस्टरोंकी प्रगतिके सम्बन्धमें बहुत व्यग्र हैं । गत सप्ताह ही उन्होंने उनके लाभार्थं फर्जी मुकदमोंपर अभ्यासार्थ बहसके लिए एक वाद-विवाद समिति स्थापित की है। किन्तु मैं निराश नहीं हूँ । संक्षेपमें, मेरी परिस्थिति यही है । बम्बईमें मनुष्य नियमित जीवन और संघर्षके लिए बाध्य हो जाता है; इसे मैं एक तरहसे पसन्द ही करता हूँ । इसलिए जबतक यह असह्य ही नहीं हो जाता, तबतक शायद मैं बम्बईसे और कहीं जाने की बात नहीं सोचूंगा ।

यह जानकर मुझे बहुत प्रसन्नता हुई कि मणिलालका काम ऐसा अच्छा चल रहा है।

यह सच है कि पहले-पहल मेरे भतीजेने बनारससे निराशाजनक खबरें भेजी थीं। वहाँ दिनमें केवल दो बार भोजन दिया जाता है, यह अब भी मुझे एक कमी ही दिखाई देती है । किन्तु अभी इस या उस पक्षमें फैसला करनेका समय नहीं हुआ। वह अपनी बिलकुल नई परिस्थितियोंका अभ्यस्त हो जानेपर ही मुझे अधिक विश्वस्त खबरें भेज सकेगा ।

  1. गांधीजीके एक मित्र, जिन्होंने बादमें रियासती राजनीतिमें भाग लेने और गांधीजीके रचनात्मक कार्य में योग देनेके लिए वकालत छोड़ दी थी ।