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२०६. पत्र : दलपतराम भवानजी शुक्लको

आगाखाँ भवन
उच्च न्यायालय के सामने
बम्बई
नवम्बर ८, १९०२

प्रिय शुक्ल,

मुझे रुपयोंके साथ एक सन्देश[१] मिला है जिसमें अनुरोध किया गया है कि मैं तुरन्त नेटाल रवाना हो जाऊँ। वहाँकी कठिनाइयोंका सामना करनेके लिए काफी शक्ति मुझमें नहीं रही है, इसलिए जाना निश्चित करनेके पहले मैंने कुछ सवाल पूछे हैं जिससे आजकी हालतमें कमसे-कम आन्तरिक व्यवस्थाकी हदतक मेरा मार्ग यथासम्भव निर्विघ्न हो सके । निन्यानवे प्रतिशत सम्भावना तो जानेकी ही है, और वह भी १९ तारीखको ही । इसलिए शायद भारतसे आपको यह मेरा अन्तिम पत्र होगा । देवचन्द पारेखको अलगसे लिखनेका समय नहीं है, इसलिए कृपा करके यह पत्र उनको दिखा दीजिए। यदि वे स्वयं या वाणीचन्द, जिनका जिक्र उन्होंने मुझसे किया था, जानेके लिए तैयार हों तो मैं यथाशक्ति सब करने के लिए तैयार हूँ । दक्षिण आफ्रिकामें अधिक नहीं तो छः भारतीय वैरिस्टरोंकी गुंजाइश हो सकती है। इसलिए अगर कुछ बैरिस्टर --- अलबत्ता, सही किस्मके --- एक दृष्टि अपनी आजीविकापर और दूसरी सार्वजनिक कार्यपर रख कर आयें, तो बहुत-सा भार बँट जायेगा, और यहाँके दबावमें कमी होगी, सो तो होगी ही । मैं एक दूसरे व्यक्तिसे भी पत्र-व्यवहार कर रहा हूँ ।

अब अपने बारेमें । मेरी पत्नी मेरे साथ जायेंगी या नहीं, यह डर्बनसे उत्तर मिलनेपर तय होगा । लेकिन वे जायें या न जायें, मैं दोनों लड़कों--- गोकुलदास और हरिलालको यहीं छोड़ जाना चाहता हूँ। राजकोटमें प्लेग खत्म होते ही, वे वहाँ चले जायेंगे । बनारसको मैं देख चुका हूँ। वह अनुकूल नहीं पड़ता । गोंडलमें कोई खास आकर्षण नहीं है । इसलिए सबसे अच्छा यही होगा कि उन्हें काठियावाड़ हाई स्कूलमें रखा जाये और उनकी शिक्षा-दीक्षा की देखभाल करने के लिए कोई भरोसेका आदमी वेतनपर रख दिया जाये। आपसे केवल यही कहना है कि कृपया लड़कोंकी देखभाल करें, उन्हें जब-तब देख लिया करें और यदि आपको आपत्ति न हो तो उन्हें समझायें कि वे आपके अपने टेनिस-मैदानका उपयोग किया करें। यदि मैं उनके लिए ठीक आदमीकी खोज न कर पाया तो मुझे शायद इसके लिए भी आपको कष्ट देना पड़ेगा ।

अब वहाँ प्लेगका क्या हाल है ?

हृदयसे आपका,
मो० क० गांधी

मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (जी० एन० २३३०)से ।

  1. निम्नलिखित तार उन्हें डर्बनसे भेजा गया था : "वैरिस्टर गांधी, राजकोट: समिति अनुरोध करती है, वादा पूरा करें। रुपये भेजते हैं ।" (एस० एन० ४०१३ )