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२०९. प्रार्थनापत्र : चेम्बरलेनको[१]

डर्बन
दिसम्बर २७, १९०२

सेवामें

परम माननीय जोज़ेफ़ चेम्बरलेन
सम्राट्के मुख्य उपनिवेश-मन्त्री
डर्बन

परम माननीय महोदय,

हम निम्न हस्ताक्षरकर्ता, नेटाल-निवासी ब्रिटिश भारतीयोंके प्रतिनिधि, उनकी ओरसे आदरपूर्वक आपका ध्यान निम्नांकित कानूनी निर्योग्यताओंकी ओर आकृष्ट करना चाहते हैं, जिनके कारण परम कृपालु महामहिम सम्राट्की भारतीय प्रजाओंको भारी कष्ट उठाना पड़ रहा है।

विक्रेता परवाना अधिनियम २९ मई १८९७ को जारी किया गया था। इसके अनुसार नियुक्त परवाना अधिकारीको प्रायः ऐसा एकाधिकार प्राप्त हो जाता है कि वह चाहे जिस दूकानदार या फेरीवालेके परवाना प्रार्थनापत्रको स्वीकृत या अस्वीकृत कर दे । यह बहुत बड़े अत्याचारका उपकरण है और इसका प्रभाव उपनिवेशमें बसे हुए भारतीय लोगोंमें से बहुत-से सम्मानित और सम्पन्नतम व्यक्तियोंपर पड़ता है।

परवाना-अधिकारियोंके निर्णयोंके विरुद्ध अपील स्थानीय निगमों (कारपोरेशनों), निकायों (बोर्डों) अथवा परवाना देनेवाले निकायोंमें --- इनमें से जहाँ जो हो—-- की जा सकती है। इस सम्बन्धमें, इन लोक-निर्वाचित निकायोंके निर्णयोंके विरुद्ध अपील सुननेका स्वाभाविक अधिकार इस कानूनमें सर्वोच्च न्यायालयसे छीन लिया गया है। यह बतलाने की तो हमें आवश्यकता ही नहीं कि ये लोक-निर्वाचित निकाय कभी-कभी अपने प्राप्त अधिकारोंका कैसा दुरुपयोग करते हैं। इसी विषयपर अपने पिछले प्रार्थनापत्रमें हमें आपका ध्यान इस कानूनके अमलसे होनेवाली कठिनाइयोंके यथार्थ उदाहरणोंकी ओर खींचनेका सम्मान प्राप्त हुआ था । परोक्ष रूपमें, इसके कारण बहुत-सा भारतीय उद्यम रुक जाता है। गरीब व्यापारी परवानेके लिए प्रार्थनापत्र देने तकका साहस नहीं करते; और सब भारतीय व्यापारियोंको एक वर्षकी समाप्तिसे लेकर अगले वर्ष की समाप्तितक दुविधामें लटकते रहना पड़ता है, क्योंकि इन परवानोंको प्रतिवर्ष फिर जारी करवाना पड़ता है, और इस कानूनके अनुसार किसी भी वर्ष उन्हें जारी करनेसे इनकार किया जा सकता है। हमें ज्ञात हुआ है कि एक बार एक निगमने पहले तो सभी भारतीय प्रार्थनापत्र अस्वीकृत कर दिये थे और जब यह भय होने लगा कि अधिकतर स्थानीय निकाय एकदम सभी भारतीय व्यापारियोंका सफाया न कर दें तब आपके कहने पर नेटाल सरकारने उन्हें लिखा कि यदि तुमने कानून द्वारा प्राप्त इस मनमाने अधिकारका प्रयोग न्याय और निष्पक्षतासे न किया तो शायद इसे मन्सूख कर देना पड़े। हमें मानना पड़ता

  1. उपनिवेश मन्त्रीकी दक्षिण आफ्रिकाकी यात्राके समय नेटाली भारतीयोंके एक शिष्टमण्डलने यह प्रार्थनापत्र उन्हें दिया था। इस शिष्ट-मण्डलका नेतृत्व गांधीजीने किया था ।