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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

छोड़कर, वह सदा अस्वीकृत कर दी जाती है। इसके अतिरिक्त, उपनिवेशमें बसा हुआ काई भी व्यक्ति, अपनी पत्नी और नाबालिग बालकोंको छोड़ कर, अपने माता-पिता आदि अन्य सम्बन्धियोंको अपने पास नहीं रख सकता, वे अपने निर्वाहके लिए उसपर निर्भर ही क्यों न करते हों। कानून गहरी शरारतोंकी संभावनाओंसे भरा पड़ा है। एक उदाहरण लीजिए । युद्धके समय ट्रान्सवालके सैकड़ों शरणार्थियोंके लिए १० पौंड बिना जमा कराये, इस उपनिवेशमेंसे गुजरनातक मुश्किल हो गया था। जब बात बहुत बढ़ गई तब दो बार सरकारसे प्रार्थना की गई, और आखिर परमश्रेष्ठ उच्चायुक्तके बीचमें पड़नेपर ही इन शरणार्थियोंको उपनिवेशमेंसे गुजरने की इजाजत दी गई। ब्रिटिश प्रजाजन, अपराधी या भुखमरे न होते हुए भी, महामहिमके साम्राज्यके किसी भागमें जानेतक न पायें, यह बात समझमें आना बहुत कठिन है ।

भारतीय बालकोंकी शिक्षाका प्रश्न दिन-प्रतिदिन अधिकाधिक पेचीदा बनता जा रहा है । यह तथ्य भी हमसे छिपा नहीं है कि सरकारको जनताके प्रबल द्वेष-भावका सामना करना पड़ रहा। फिर भी, हालतें कैसी भी क्यों न हों, सादर निवेदन यह है कि उपनिवेशकी भारतीय जनता भी यहाँकी सार्वजनिक आयमें अपना भाग देती है, इसलिए उसका अधिकार है कि उसे नेटालमें उत्पन्न हुए भारतीय बालकोंको --- जिनका स्वदेश नेटाल ही है--- शिक्षित करनेके लिए उचित सुविधाएँ प्रदान की जायें। जो सज्जन उत्तरदायी सरकारी पदोंपर नियुक्त हैं, पूरी तरह यूरोपीय ढंगसे रहते हैं, जिनकी मातृभाषा भी अंग्रेजी है, उन्हें भी अपने बालकोंको साधारण सरकारी स्कूलोंमें दाखिल करानेके अधिकारसे वंचित कर दिया गया । उच्चतम अधिकारियोंसे प्रार्थना करनेका फल भी कुछ नहीं निकला। सरकारने हालमें एक उच्च श्रेणीका (हायर ग्रेड) भारतीय स्कूल डर्बनमें और एक मैरित्सबर्गमें खोलनेकी कृपा की है । इन दोनोंमें आरंभिक शिक्षा दी जाती है; परन्तु इनसे निकलनेके बाद भारतीय बालकोंके लिए आगे शिक्षाकी कोई सुविधा नहीं है ।

इस उपनिवेशकी समृद्धि गिरमिटिया भारतीयोंपर निर्भर है । परन्तु अपना गिरमिट पूरा कर लेनेके बाद यदि वे इस उपनिवेशमें रहना चाहें तो उन्हें ३ पौंड व्यक्ति कर प्रतिवर्ष देना पड़ता है। हमारी नम्र सम्मतिमें यह बहुत अनुचित है। परमश्रेष्ठ लॉर्ड एलगिन भी इसे अनुचित बतला चुके हैं। परन्तु अब नेटालकी संसदने एक विधेयक पास किया है। उसके अनुसार यह व्यक्ति कर गिरमिटियोंके बालकोंपर भी लाद दिया जायेगा --- लड़कियोंपर १३ वर्षकी हो जानेपर और लड़कोंपर १६ वर्षके हो जानेपर। यह विधेयक इस समय विचारके लिए आपके सामने प्रस्तुत है । इसके विषयमें हम जो भी कह सकते थे सो सब अपने प्रार्थनापत्रमें आपकी सेवामें निवेदन कर चुके हैं। यह ब्रिटिश परम्पराओंके इतना विरुद्ध है कि, हमें विश्वास है, इसे सम्राट्की स्वीकृति प्राप्त नहीं होगी ।

कानूनी निर्योग्यताएँ तो और भी हैं। परन्तु शायद उनका महत्त्व गौण है, इसलिए हम उनकी चर्चा करना नहीं चाहते। उदाहरणार्थ, दिन और रात, शहर और गाँव, सब जगह परवाना लेकर चलने की पाबन्दी बड़ी दुःखदायी है । हम मानते हैं कि जबतक यहाँ गिरमिटिया भारतीय आबादी मौजूद है तबतक परवानेके कानूनकी जरूरत पड़ेगी, परन्तु इसका इलाज यह है कि उस कानूनपर अमल सोच-समझ कर किया जाये। हालमें, प्रतिष्ठित स्त्री-पुरुषोंको भी गिरमिटिया होने के सन्देहमें गिरफ्तार कर लिया गया था। एक आदमीकी पत्नीके बच्चा होनेवाला था, वह डॉक्टरकी तलाशमें निकला था, उसे भी गिरफ्तार कर लिया गया । इन सबको जमानतपर भी नहीं छोड़ा गया। जब मामला सरकारके सामने पेश किया गया तब उसने कहा कि कानूनी कार्रवाई करो ।