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प्रार्थनापत्र : चेम्बरलेनको

हमें इस उपनिवेशमें जीवित रहनेके लिए निरन्तर संघर्ष करना पड़ रहा है। पता नहीं, हमारी कानूनी निर्योग्यताओंकी तालिका पूरी कब होगी। इन दिनों गम्भीरतासे यह सोचा जा रहा है कि जिन गिरमिटिया भारतीयोंकी मियाद खत्म हो चुकी है उन्हें जबरन भारत लौटा दिया जाये और भारतीय निवासियोंको यहाँ जमीन न खरीदने दी जाये । यहाँके निवासी भारतीयोंके राजनीतिक अधिकार प्रायः कुछ नहीं हैं; राजनीतिक अधिकार पानेकी उनकी इच्छा भी नहीं है। कई वर्ष पूर्व जब हमने अपने मताधिकार छीने जानेका विरोध किया था तब हमने दो कारणोंसे वैसा किया था। एक तो उससे हमारा तिरस्कार होता था और दूसरे, यह स्पष्ट था कि वह बादको बनाये जानेवाले भारतीय-विरोधी कानूनोंका सूचक था। जब माननीय सर जॉन रॉबिन्सनने यह मताधिकार छीननेका विधेयक पेश किया था तब उन्होंने उक्त आशंकाओंका उत्तर यह दिया था कि ऐसी कोई आशंका नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मताधिकार छीन लिया जानेके पश्चात्, मताधिकार-हीनोंके हितों की रक्षा करना विधान-निर्माताओंका एक विशेष कर्त्तव्य हो जायेगा । परन्तु ऊपर जिन कानूनी निर्योग्यताओंकी चर्चा की गई है। उनसे प्रकट होता है कि इन माननीय सज्जनका आश्वासन कितना निष्फल हुआ है । व्यापारिक प्रतिस्पर्धाके अनुचित भयके कारण उत्पन्न हुई रंग-द्वेषकी भावना बहुत प्रवल सिद्ध हुई है।

प्रथम दो कानूनोंको शाही स्वीकृति प्राप्त हो चुकी है, फिर भी हमने यहाँ उनकी चर्चा इस आशासे कर दी है कि वे दोनों हमारी निरन्तर परेशानीका कारण बने हुए हैं और इसलिए हमारा वैसा करना बेमौका नहीं समझा जायेगा। इस बातसे भी हम अपरिचित नहीं हैं कि ब्रिटिश सरकार स्वशासित उपनिवेशोंपर कमसे-कम नियन्त्रण रखती है । परन्तु हम साहसपूर्वक ऐसा मान कर चल रहे हैं कि हमने आपकी सेवामें जो समस्या पेश की है वह इतने महत्त्वकी और इस प्रकारकी कि उसके कारण ब्रिटिश सरकारको स्वशासित उपनिवेशोंपर जो भी अधिकार प्राप्त हों उनका प्रयोग किया जा सकता है ।

आखिर हमारे प्रश्नका सम्बन्ध केवल कुछ हजार भारतीयोंसे नहीं, महामहिम सम्राट्की भारतीय प्रजाओंकी मान-मर्यादासे है । स्व० सर विलियम विल्सन हंटरके [ लंदन टाइम्समें प्रकाशित ] शब्दों में :

क्या ब्रिटिश भारतीयोंको, जब वे भारत छोड़ते हैं, कानूनके सामने वही दर्जा मिलना चाहिए, जिसका उपभोग अन्य ब्रिटिश प्रजाऍ करती हैं ? वे एक ब्रिटिश प्रदेशसे दूसरेको स्वतन्त्रतापूर्वक जा सकते हैं या नहीं, और सहयोगी राज्योंमें ब्रिटिश प्रजाके अधिकारोंका दावा कर सकते हैं या नहीं ?

नेटालके विषयमें लॉर्ड रिपनने अपने एक खरीतेमें हमें विश्वास दिलाया था कि :

सम्राज्ञी सरकारकी इच्छा है कि सम्राज्ञीकी भारतीय प्रजाओंके साथ उनकी अन्य प्रजाओंकी बराबरीका व्यवहार किया जाये ।

यहाँ हम यथाशक्ति यत्न करते रहते हैं कि हम अधिक अच्छे व्यवहारके योग्य बन जायें; और हमें सन्देह नहीं है कि मन्त्रीगण भी आपको ऐसा ही बतलायेंगे । भारतीय प्रवासियोंके संरक्षकने, यद्यपि उसका सम्बन्ध हमारे देशके केवल निम्नतम या, यों कहें कि, निर्धनतम लोगोंके साथ है, अपने पिछले प्रतिवेदनमें कहा है :

मुझे यह बतलाते हुए प्रसन्नता होती है कि इस उपनिवेशमें आकर बसे हुए भारतीय कुल मिलाकर कानूनका पालन करनेवाले, व्यवस्थित और सम्मानित लोग हैं । उनको साधारणतया समृद्ध भी माना जा सकता है ।

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