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सोमनाथ महाराजका मुकदमा

श्री कालिन्सने कहा कि हम एक परिपाटी स्थापित कर रहे हैं, और मेरे खयालसे हम एक अनिष्ट परिपाटी स्थापित कर रहे हैं। एक मामलो में जो-कुछ किया जा रहा है, वही सब मामलों में करना जरूरी होगा और ऐसी हालतमें मैं प्रस्तावके विरुद्ध मत देनेके लिए बाध्य हूँगा ।

मेयरने कहा कि परिषदने बहुमतसे निर्णय कर दिया है कि परवाना-अधिकारीसे कारण न पूछे जाये । इसके बाद मूल प्रस्तावपर मत लिये गये और वह पास हो गया और, इस तरह, परवाना-अधिकारीके निर्णयफी पुष्टि कर दी गई।

[मार्च २, १८९८]
 
बाद की अपील

सोमनाथ महाराज नामके एक भारतीयने अपील की कि उसे नेटाल भारतीय कांग्रेसके अमगेनी रोड-स्थित मफानमें व्यापार करनेका परवाना देनेसे इनकार कर दिया गया है ।

श्री गांधीने अपील करनेवाले और मकान-मालिकोंकी ओरसे पैरवी की। उन्होंने कहा, मैंने टाउन क्लार्कको लिखा था कि परवाना-अधिकारीने जिन कारणोंसे परवाना देनेसे इनकार किया है वे मुझे बता दिये जायें; परन्तु मुझसे कहा गया कि कारण नहीं बताये जा सकते।

मेयरके एक प्रश्नके उत्तरमें श्री गांधीने बताया कि उक्त जायदादके मालिक नेटाल भारतीय कांग्रेसके ट्रस्टी है।

श्री गांधीने फिरसे बहस आरम्भ करते हुए कहा कि उन्होंने टाउन क्लार्कसे कागजातकी नकल भी मांगी थी, परन्तु उन्हें बताया गया कि उन्हें नकल नहीं दी जा सकती। उन्होंने दावा किया कि कानूनन उन्हें नकल पानेका अधिकार है, क्योंकि उस न्यायाधिकरणके सामने अपीली मामलोंके जाब्तेके साधारण नियम ही लागू होंगे । और, वे कारण जाननेके भी हकदार हैं। कानूनमें ऐसी कोई बात नहीं है जिससे मालूम होता हो कि जाब्ते के साधारण नियमोंको उलटा जा सकता है । अधिनियमके ग्यारहवें खण्डमें उसके अनुसार बनाये गये नियमोंका विधान है, परन्तु मैं नहीं जानता कि वे वैध हैं या नहीं। मैं नजीरें पढ़कर सुनाना नहीं चाहता, क्योंकि मुझे लगता है, अगर अपील करनेका अधिकार दिया गया होता तो ऐसी अपीलोंकी कार्रवाई साधारण जाब्ते के अनुसार ही होती। अगर ऐसा न होता तो लगता मानो कानूनने एक हाथसे अपील करनेवालेको अधिकार दिया और दूसरेसे छीन लिया, क्योंकि अगर वह नगर-परिषदके सामने अपील करता और उसे यह मालूम न होता कि परवाना देनेसे इनकार क्यों किया गया और वह अर्जीके कागजात न पा सकता, तो उसे अपीलका कोई अधिकार व्यावहारिक रूपमें होता ही नहीं। अगर उसे अपील करनेका अधिकार दिया गया है तो निश्चय ही उसे कार्रवाईके पूरे कागजात पानेका हक है; और अगर नहीं है, तो वह आदमी बाहरी है। क्या परिषद यह फैसला करनेवाली है कि वह एक बाहरी आदमी है- हालांकि यहाँ उसका भारी हित दाँवपर है ? उससे कहा गया था : “तुम आ सकते हो, तुम जो चाहो कह सकते हो, पर यह बिना जाने कि मामलेकी भीतरी और बाहरी बातें क्या है," और वह आपके सामने आया; परन्तु अगर उसके कोई कारण हों तो वे उसे अचानक बताये जायेंगे, और अगर सफाई-दारोगाके पाससे कोई रिपोर्ट आई हो, तो वह भी उसे अचानक बताई जायेगी। उन्होंने निवेदन किया कि अपील करनेवालेको परिषदकी कार्रवाईका लेखा प्राप्त करनेका और कारण जाननेका अधिकार है, और अगर नहीं है, तो उसे अपील करनेका अधिकार देने से इनकार किया गया है। मेरा मुअ- क्किल एक नागरिक है और उसे वे सब सहूलियतें पानेका अधिकार है जो दूसरे नागरिकोंको

१. नेटाल ऐडवर्टाइज़र, मार्च ३, १८९८, में कहा गया था कि अपीलकी सुनवाई कल हुई थी।

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