पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/३३४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९४
सम्पूर्ण गांधी वाङमय

और दूसरे कानून, जो ढीले कर दिये गये हैं, पुराने शासनमें भी कभी कड़ाईके साथ लागू नहीं किये गये थे ।

"एशियाई मामलोंका मुहकमा" (डिपार्टमेंट ऑफ एशियाटिक अफेयर्स)के नामसे एक नया मुहकमा खोला गया है। उसकी स्थापनाके पीछे कितने ही अच्छे इरादे क्यों न हों, व्यवहारतः यह पुरानी पद्धतिका नया रूप ही है और हमारे हितोंके बहुत खिलाफ है ।

जब यह खोला गया, तब हमने इसके विरुद्ध सादर आपत्ति प्रकट की थी, परन्तु ज्ञात यह हुआ कि यह केवल अस्थायी विभाग है और नियमित कामकाज आरम्भ हो जानेपर बन्द कर दिया जायेगा । पुराने शासनमें केवल भारतीय मामलोंकी देखभालके लिए अलग कोई विभाग नहीं था ।

इसलिए अब पहले की अपेक्षा भारतीय व्यापारी और दूकानदार कम हो गये हैं। और रुख अभी और भी कड़ाईकी ओर है। ब्रिटिश अधिकार शुरू होनेपर कुछ परवाने उन लोगोंके नाम जारी किए गये थे, जिनके पास युद्धसे पहले परवाने नहीं थे। सरकारने अब सूचना निकाली है कि ऐसे लोगों को परवाने देनेका उसका इरादा नहीं है । इस तरह हममें से बहुतोंके सम्मुख, जो युद्धके पहले परवानोंके बिना व्यापार करते थे और जिन्हें गत वर्ष परवाने मिले थे, अब परवाने रद हो जानेकी सम्भावना उपस्थित है। पीटर्सबर्गमें ऐसे परवानेदारोंको ताकीद मिल चुकी है कि उन्हें केवल तीन महीनोंके लिए अस्थायी परवाने मिलेंगे, जिससे वे अपना माल बेच डालें ।

वाकस्ट्रूमके आवासी (रेजिडेंट) मजिस्ट्रेटने व्यापार-संघ (चेम्बर ऑफ कॉमर्स) को सूचित किया है कि चालू भारतीय परवाने इस वर्ष बदले नहीं जायेंगे। हम जानते हैं, हमारे लिए ठीक मार्ग यह है कि ऐसे मामलोंमें आपकी सेवामें प्रार्थनापत्र भेजनेसे पहले हम स्थानीय उच्चाधिकारियोंसे मिलें। इनका जिक्र हम केवल यह दिखानेके लिए करते हैं कि हमारी हालत पहलेकी अपेक्षा कितनी ज्यादा बुरी है । और इसका कारण एशियाई मामलोंका पृथक् प्रशासन है, जिससे विभिन्न वर्गोंके बीच भेदभाव भी बढ़ता है।

इस समय हमारी हालत पहले की अपेक्षा कितनी अधिक खराब हो गई है, इसका एक और उदाहरण यह है कि, एक सरकारी अफसरके बच्चोंको बोअर-शासन कालमें साधारण यूरोपीय स्कूलमें पढ़नेकी अनुमति थी; किन्तु अब, ब्रिटिश अधिकारके बाद, वे उस स्कूलसे निकाल दिये गये हैं ।

युद्ध छिड़नेसे ठीक पहले बोअर सरकार जोहानिसबर्ग की वर्तमान भारतीय बस्तीको शहरसे बहुत दूर एक स्थानपर हटाने का प्रयत्न कर रही थी। इसका विरोध किया गया ।[१] तत्कालीन उप-राजप्रतिनिधि श्री ईवान्सने हमारी ओरसे बीच-बचाव किया और यह मामला जहाँका- तहाँ रहने दिया गया। किन्तु अब यह इतना आगे बढ़ गया है कि इससे बस्तीके निवासी आतंकित हो उठे हैं। हम जानते हैं कि वर्तमान स्वास्थ्य अधिकारीने इस बस्तीकी बेहद निन्दा की है। परन्तु, उनके कहनेके अनुसार, यदि यह गंदी हालतमें है तो जाहिर है, इसमें भारतीयोंका चौथाई कसूर भी नहीं है । बोअर शासनमें इसकी आवश्यकताओंकी उपेक्षा की गई थी। भारतीय समाजके विरुद्ध गन्दगीके इलजामकी हमारे पिछले प्रार्थनापत्र[२]में पूर्ण रूपसे मीमांसा की जा चुकी है और आशा है, हमने इसका पूरे तौरसे खंडन भी कर दिया है। नीचे हम प्रतिष्ठित चिकित्सकोंके दो डॉक्टरी प्रमाणपत्र उद्धृत करते हैं ।

  1. देखिए " पत्र : ब्रिटिश एजेंटको,” जुलाई २१, १८९९ ।
  2. देखिए खण्ड १, पृष्ठ १८९-२११ और यह खण्ड, पृ४ ६८-७१