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प्रार्थनापत्र : लॉर्ड कर्जनको

था । उन्होंने आपके पूर्वाधिकारीको, उनकी इच्छाके बहुत-कुछ विपरीत, गिरमिटिया भारतीयोंके गिरमिटोंमें एक शर्त जोड़नेके लिए राजी कर लिया था । उस शर्तके अनुसार गिरमिटिया भारतीय इस बातके लिए पाबन्द हो जाते हैं कि वे जबतक उपनिवेशमें रहें तबतक या तो गिरमिटोंमें बँध कर मजदूरी करते रहें, या भारत लौट जायें, या प्रतिवर्ष ३ पौंड व्यक्ति-कर दें ।

उक्त आयोगके सदस्योंने नेटाल लौटकर यह सूचना दी थी कि यद्यपि भारत सरकारने गिरमिटियोंकी अनिवार्य वापसीकी शर्त नहीं मानी है, फिर भी हमारा उद्देश्य सफल समझा जा सकता है, "क्योंकि जिन देशोंको कुली जाते हैं उनके बार-बार भारत सरकारसे अनुरोध करनेपरभी उनमेंसे किसीको दुबारा गिरमिट लिखानेकी अनुमति नहीं मिली; और न किसी मामलेमें गिरमिटकी समाप्तिपर अनिवार्य वापसीकी शर्त ही मंजूर की गई है|"

इसलिए, यह देखते हुए कि १८९४ में भारत-सरकार जिस हदतक गई थी, वहाँतक बहुत अनिच्छासे गई थी, प्रार्थियोंको पूरा विश्वास है कि परमश्रेष्ठ उस आयोगकी बातपर ध्यान न देंगे जो इस वर्ष भारत आ रहा है ।

फिर भी, प्रार्थी आपके सामने संक्षेपमें नेटालकी परिस्थितिका विवेचन करना चाहेंगे और यह विचार भी करेंगे कि यह आयोग आपकी सेवामें जो उग्र प्रस्ताव पेश करनेवाला है, उनके परिणाम क्या हो सकते हैं।

भारतीय प्रवासी-संरक्षकके पिछले प्रतिवेदनमें इस तथ्यपर खास जोर दिया गया है कि भारतीय मजदूरोंकी माँग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।

बताया गया है कि, नेटाली किसान सभा (फार्मर्स असोसिएशन)के अध्यक्ष श्री टी० एल० हिस्लॉपने गत वर्ष अपने वार्षिक अभिभाषण में कहा था :

उपनिवेशमें भारतीयोंके प्रवेशके विरुद्ध कभी-कभी हमें बड़ा शोर-गुल सुनाई देता है । किन्तु हम यह तथ्य पूरी तरह ध्यानमें रखें कि हम कुलियोंके बिना काम चलाना कितना ही पसन्द क्यों न करें, उपनिवेशमें उनके आगमनको रोकनेके प्रयत्नका परिणाम होगा देशके उद्योगोंका विनाश। अजान लोग बड़ी-बड़ी बातें बनाते हैं कि हमें भारतीयोंके साथ यह करना चाहिए और वह करना चाहिए, परन्तु इस सचाईकी ओरसे आँखें मींचनेमें कोई फायदा नहीं कि इस मामलेमें हम बहुत ज्यादा भारत सरकारके अधीन हैं। मेरा खयाल है, यह एक सचाई है कि इस देशमें हालमें बने कानूनोंसे और, उनसे भी बढ़कर, हमारे कुछ विधान-निर्माताओंके अविचारपूर्ण भाषणोंसे भारतमें बहुत असन्तोष फैल गया है। इसलिए इस समय और अधिक रियायतोंकी प्रार्थना व्यर्थ है। मुझे पता लगा है कि भारत सरकारके सामने इस प्रस्तावके सुने जानेकी कोई गुंजाइश नहीं है कि गिरमिटिया भारतीयोंको अपने गिरमिटोंकी अवधि भारत लौट कर समाप्त करने दी जाये ।

नेटाल मर्क्युरीने श्री हिस्लॉपके भाषणपर टिप्पणी करते हुए एक अग्रलेखमें लिखा है :

भारत-सरकारको हमारी सुविधाओंकी अपेक्षा उन लोगोंकी सुख-सुविधाका विचार अधिक करना है जिनकी वह संरक्षक है; और यदि हमारी संसद भोंड़े कानून मंजूर करती है और उसके सदस्य अविचारपूर्ण भाषण देते हैं, तो हमें भारतसे आवश्यक मजदूर प्राप्त करनेमें संभवतः भारी रुकावटोंका सामना करना पड़ेगा ।