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पत्र : दादाभाई नौरोजीको

न हो तो परमश्रेष्ठ इस उपनिवेशको यह सलाह देनेकी कृपा करें कि वह भारतीय मजदूरों को अपने यहाँ बुलाना बन्द कर दे।

और इस न्याय और दयाके कार्यके लिए प्रार्थी अपना कर्तव्य समझकर सदा दुआ करेंगे, आदि-आदि।

छपी हुआ मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो नकल (एस० एन० ४०३१) से।

२१४. पत्र : दादाभाई नौरोजीको[१]

१४, मर्क्युरी केन
डर्बन
जनवरी ३०, १९०३

[ माननीय दादाभाई नौरोजी

लन्दन ]

[ महोदय, ]

श्री चेम्बरलेनसे नेटालमें भारतीयोंके दो प्रतिनिधि-मण्डल मिले थे--- एक डर्बनमें और दूसरा मैरित्सबर्ग में । निम्नलिखित विवरण[२] उन्हें डर्बनके प्रतिनिधि-मण्डलने दिया था, जिसपर टीका-टिप्पणी करनेकी आवश्यकता नहीं है।

परम माननीय महोदयका खयाल है कि जिन कानूनोंपर यहाँ पहलेसे अमल हो रहा है उनके विषय में वे कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि इस उपनिवेशमें "उत्तरदायित्वपूर्ण" (?) शासन स्थापित है। यह उत्तर कुछ अंशोंमें यथार्थ है । उन्होंने यह भी कहा था कि गिरमिटिया भारतीयोंके बच्चोंपर ३ पौंड व्यक्ति कर लगानेका जो विधेयक हालमें पास किया गया है उसके सम्बन्ध में वे भारत-कार्यालय (इंडिया-आफिस) की सलाहके अनुसार चलेंगे। शिष्ट-मंडलके साथ भेंटके समय, आपसे लॉर्ड जॉर्ज हैमिल्टनने जो कुछ कहा था उससे आशा होती है कि यह विधेयक अस्वीकृत कर दिया जायेगा । वे उपनिवेशियोंके इस भयसे सहमत जान पड़ते हैं कि यदि स्वतन्त्र भारतीयोंका यहाँ आगमन नियन्त्रित न किया गया और गिरमिटिया भारतीयों को उनका गिरमिट पूरा हो जानेपर भारत वापस न भेजा गया तो यह उपमहाद्वीप भारतीय लोगोंसे पट जायेगा। एक प्रकारसे वे उपनिवेशियोंके रुखका समर्थन करते प्रतीत होते थे । जब उन्होंने शिष्ट-मण्डलके सामने भाषण दिया तब मैं भी मौजूद था। मेरा विचार था कि मैरित्सबर्गमें शिष्ट-मण्डलसे भेंटके समय उनके दो-एक भ्रमोंका निवारण कर दूँ, परन्तु मुझसे कहा गया कि मैं किसी भी मामलेपर बहस न करूँ । इसलिए डर्बनमें उनसे जो निवेदन किया गया था मैंने उसका ही समर्थन कर दिया, और श्री चेम्बरलेनने भी वही दुहरा दिया जो उन्होंने वहाँ कहा था ।

हाल में नेटाल-सरकारने एक आयोग इसलिए भारत भेजा है कि वह गिरमिटोंकी समाप्ति भारतमें ही की जानेकी व्यवस्था करा ले, जिससे कि गिरमिटिया भारतीयोंको नेटालमें बसनेका मौका ही न मिले। यदि यह बात लॉर्ड कर्ज़नने मान ली तो निस्सन्देह अन्यायकी पराकाष्ठा हो जायेगी। इसका उदाहरण अबसे पहले कोई नहीं मिलता, और यह कुछ वर्षकी विशुद्ध दासता

  1. यह पत्र दादाभाई नौरोजीके नाम लिखा गया था ।
  2. "प्रार्थनापत्र : चेम्बरलेनको,” दिसम्बर २७, १९०२ ।