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पत्र: उपनिवेश सचिवको

श्री दफ्तरी[१]को प्रणाम पहुँचाना और उनसे पत्र लिखनेको कहना । मुझे समय मिलेगा, तब मैं उन्हें अलग पत्र लिखूंगा ।

रु० ०-८-० भेजा, वह व्यवहार था। मगर अब तो वह मामला खत्म हो चुका है ।

मोहनदासके आशीर्वाद

पुनश्च : जगह छोड़नेकी जल्दी करना जरूरी नहीं है ।[२]

गांधीजीके हस्ताक्षरोंमें मूल गुजराती प्रति (सी० डबल्यू० २९३८)से ।


२१६. पत्र : उपनिवेश-सचिवको

पोस्ट बॉक्स नं० २९९
जोहानिसबर्ग
फरवरी १८, १९०३

सेवामें

माननीय उपनिवेश-सचिव
प्रिटोरिया

महोदय,

उपनिवेशके मुख्य शहरोंमें बाजार-प्रणाली स्थापित करनेके प्रस्तावके विषयमें परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर[३] तथा आपने भारतीय मत जाननेकी इच्छा प्रकट की थी। उसके अनुसार मैं आपके सामने भारतीयोंका मत पेश कर रहा हूँ ।

मेरे नम्र विचारसे भारतीय समाजको इस प्रकारकी व्यवस्था इन शर्तोंपर स्वीकार होगी :

(१) बाजार (एक या अनेक) शहरकी सीमाके अन्तर्गत ऐसे व्यापारिक क्षेत्रमें स्थित हों जहाँ साधारणतः सभी वर्गोंके लोग ---यूरोपीय भी- -- प्रायः आते जाते हों ।

(२) भारतीय समाजपर बाजारमें रहने या व्यापार करनेकी कोई कानूनी बाध्यता नहीं होनी चाहिए।

(३) शहरोंमें इस समय जो भारतीय व्यापारी और व्यवसायी रहते या व्यापार करते हैं और जो युद्धसे पूर्व उपनिवेशके किसी कस्बेकी सीमाओंमें व्यापार करते या रहते थे, उनसे इन बाजारोंमें किसी भी अवस्थामें रहने या व्यापार करने की आशा न की जानी चाहिए।

(४) सरकार द्वारा निश्चित भवन-निर्माण और स्वच्छता संबंधी नियम स्वीकार कर लेनेपर भारतीय समाजको ऐसे किसी भी बाजारमें गुमटी लेनेकी इजाजत मिल सकती चाहिए।

यदि उक्त सिद्धान्तके आधारपर बाजार स्थापित किये जायें, तो भारतीय समाज इन संस्थानोंको सफल बनानेमें सरकारसे सादर सहयोग करेगा।

  1. बम्बईमें गांधीजीके साथ काम करनेवाले एक वकील ।
  2. वकालतके लिए बम्बईमें जो जगह गांधीजीने किरायेपर ले रखी थी
  3. गांधीजी लेफ्टिनेंट गवर्नरसे मिले थे ।