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भारतीय प्रश्न

उतने ही जिम्मेदार एक दूसरे सूत्रसे खबर मिली है कि यह विधान नेटालके एशियाई-विरोधी विधानके आधारपर बनाया जायेगा।

श्री चेम्बरलेनने भारतीय शिष्ट-मण्डलसे ऐसा कुछ कहा था: "यदि मैं आज ऐसा विधान पास कर दूँ, जो दो या तीन सालमें उत्तरदायी शासन देनेके बाद रद हो जायेगा, तो उससे क्या लाभ होगा ? इसलिए आप लोगोंको जनमतसे समझौता करके और ट्रान्सवालके अधिकारियोंके साथ मिलकर काम करनेका प्रयत्न करना चाहिए।" भारतीय-विरोधी शिष्ट-मण्डलसे उन्होंने कहा बताते हैं : “भारतीय हमारे सहप्रजाजन हैं और न्यायोचित तथा सम्मानपूर्ण व्यवहारके अधिकारी हैं। साथ ही भारतसे लाखों भारतीयोंके अबाध प्रवासके विरुद्ध आपत्तिमें आपके साथ मेरी सहानुभूति है। ये प्रवासी भारतीय सुगमतासे आपके ऊपर छा सकते हैं, इसलिए मैं आइंदा बेजा संख्यामें भारतीयोंके प्रवासपर रोक लगानेकी सिफारिश करूँगा । किन्तु जो लोग उपनिवेशमें बस चुके हैं, मैं उनपर किसी तरहकी कानूनी निर्योग्यताएँ लगानेकी जिम्मेवारी नहीं ले सकता।

श्री चेम्बरलेनने भारतीय-विरोधी शिष्ट-मण्डलसे यदि ऐसा कहा है तो यह बहुत सन्तोषकी बात है।

भारतीय उपनिवेशको पाट नहीं सकते। वे इतनी बड़ी संख्यामें यहाँ नहीं आयेंगे । ट्रान्सवालमें १२,००० से अधिक भारतीय नहीं, जबकि अकेले जोहानिसबर्गमें यूरोपीयोंकी संख्या एक लाख है । किन्तु फिर भी यदि सरकारको भारतीयोंके मनमानी संख्यामें उपनिवेशोंमें आ बसने का भय है और वह अपने इस भयको कानूनी मान्यता देना चाहती है तो, अगर हमारी सुनी जाये, हम अधिकसे अधिक इस बातपर राजी हो सकते हैं कि विधान, कुछ संशोधनोंके साथ, नेटालके आधारपर बनाया जाये।

नेटालका कानून सामान्य स्वरूपका है, जो सबपर लागू होता है। उसके अनुसार उपनिवेशमें ऐसा कोई नया व्यक्ति आकर नहीं बस सकता जो उपनिवेशमें बसे हुए किसी व्यक्तिकी पत्नी या नाबालिग बच्चा न हो, अथवा जिसे एक-न-एक यूरोपीय भाषा न आती हो।

यदि 'यूरोपीय भाषा' के स्थानपर 'साम्राज्यमें प्रयुक्त या बोली जानेवाली कोई भी भाषा' कर दिया जाये, तो इसमें सम्भ्रान्त व्यापारियों आदिके लिए स्थान खुला रहेगा और साथ ही लाखों अपढ़ लोगोंके प्रवेशपर पाबन्दी भी लग जायेगी। एक उपनियम ऐसा भी जोड़ा जाना चाहिए कि यहाँ आबाद समाजके हितकी दृष्टिसे वैध रूपसे आवश्यक घरेलू नौकरों और रसोइयों आदिको विशेष अनुमति दे दी जायेगी भले ही वे अपढ़ हों, किन्तु पुराने बसे लोगोंके लिए नितान्त आवश्यक हों। इसके अतिरिक्त, जो दक्षिण आफ्रिकामें बस चुके हैं उनपर इन कानूनों का कोई असर न पड़ना चाहिए ।

मुझे यह बात दुहराने की जरूरत नहीं कि हम विगत गण-राज्योंसे प्राप्त निकम्मे भारतीय- विरोधी विधानके खिलाफ लड़ रहे हैं, उसके अमलके खिलाफ नहीं। इसलिए मैं अपने इस वक्तव्यको रोजमर्राके अन्यायोंके असंख्य उदाहरण देकर विस्तार न दूंगा। इन अन्यायोंका निवारण कराना तो वृक्षकी शाखाओंको छाँटनेके समान होगा । इसलिए हम माँग करते हैं कि वृक्षको ही जड़मूलसे उखाड़ फेंका जाये; क्योंकि जो कानून स्वतः बुरे हैं उन्हें कड़ाईसे अमलमें न लानेके सम्बन्धमें इंग्लैंडसे प्रेषित सान्त्वनाओंसे क्या लाभ ?

मैं आशा करता हूँ लॉर्ड जॉर्ज द्वारा शिष्ट-मण्डलको बताये गये वस्तियोंके सिद्धान्त स्वीकार न किये जायेंगे। केपटाउन और नेटालके स्वशासित उपनिवेशोंमें भी उनपर अमल नहीं होता है, तब क्या वे ट्रान्सवाल और ऑरेंज रिवरके इंग्लैंड की सरकार द्वारा शासित उपनिवेशोंमें लागू किये जा सकते हैं ?