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२१९. नये उपनिवेशोंमें भारतीयोंको स्थिति[१]

जोहानिसबर्ग
मार्च १६, १९०३

नये उपनिवेशोंमें भारतीयोंकी स्थितिसे
सम्बन्धित लघु वक्तव्य

जो घटनाएँ आजकल प्रतिदिन घट रही हैं उनसे दक्षिण आफ्रिकावासी भारतीयोंमें भयका संचार होता जा रहा है।

ट्रान्सवाल

कुछ पता नहीं कि ट्रान्सवालके वर्तमान भारतीय विरोधी कानूनोंमें परिवर्तनका जो वादा किया गया है वह कब पूरा किया जायेगा ।

इस बीच यहाँ निम्न घटनाएँ घटित हो चुकी हैं :

हुसेन अमद दस वर्षसे वाकरस्ट्रममें व्यापार करता था। उसकी दूकान जबरन बन्द कर दी गई और उसे व्यापारका परवाना देनेसे भी इनकार कर दिया गया। उस शहरमें एकमात्र भारतीय दूकान उसकी ही है। अब वह दो महीनेसे अधिक समयसे बन्द है|

सुलेमान इस्माइलको पिछले साल परवाना दिया गया था, परन्तु इस वर्ष उसे परवाना देनेसे इनकार कर दिया गया। उसकी दूकान[२] एक महीनेसे अधिक समयसे बन्द पड़ी है।

इन दोनोंकी दूकानोंमें बहुत माल भरा है। इनको पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है, और यदि इन्हें अपनी दूकानें न खोलने दी गई तो ये दोनों बरबाद हो जायेंगे।

एक दूकानका परवाना दूसरीके नाम और एक व्यक्तिका दूसरेके नाम करनेकी इजाजत देनेसे इनकार किया जा रहा है। एक भारतीय किसी किरायेके स्थानपर व्यापार करता है । मकान मालिक उसे स्थान खाली करनेकी सूचना देता है । वह भारतीय अपनी दूकान किसी दूसरी जगह ले जाना चाहता है। परवाना अधिकारी उसे ऐसा नहीं करने देता । अब दुकानदार या तो बस्तीमें जाये या दूकान बिलकुल बन्द कर दे। एक और भारतीय कारोबारसे निवृत्त होना चाहता है । उपनिवेशका एक पुराना निवासी उसका चलता कारोबार खरीद लेनेके लिए तैयार है । परन्तु परवाना-अधिकारी परवानेको उस खरीदारके नाम नहीं करता। इसलिए पहले मालिकके पास अपना माल नीलाममें बेच डालनेके अलावा कोई चारा नहीं रह जाता । इस सबका अर्थ यह है कि नये परवाने नहीं दिये जा रहे हैं।

एशियाई दफ्तर लोगोंके लिए एक आतंककी वस्तु बना हुआ है। इसका काम ही लोगोंको सतानेके नयेसे-नये ढंग निकालना है। जो लोग फिर लौटनेके विचारसे देशसे बाहर जाना चाहें उनके लिए भी परवाने लेना आवश्यक है और उन परवानोंपर उनके फोटो लगाये जाते हैं । इस प्रकार, भारतीयोंके साथ अपराधियोंका-सा व्यवहार किया जाता है ।

३-२०
 
  1. यह विवरण कुछ शब्दों को परिवर्तित कर तथा कुछको छोड़कर १७-४-१९०३ के इंडिया में प्रकाशित हुआ था ।
  2. यह रस्टेनबर्ग में थी ।