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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

निःसन्देह, फोटो लगानेका प्रयोजन यह है कि परवानोंका प्रयोग कानूनके खिलाफ न किया जा सके। परन्तु परवानोंका धोखेसे प्रयोग करनेवाले कुछ लोगोंके कारण, सभी लोगोंको दाग लगाया जा रहा है। मुसलमानोंका धर्म उनको अपना फोटो खिंचवानेसे बिलकुल मना करता है; किन्तु यह नियम लागू करनेमें उनकी इस धार्मिक आपत्ति तकका कोई विचार नहीं किया गया ।

ब्रिटिश भारतीय संघ (ब्रिटिश इंडियन असोसिएशन)के अध्यक्ष दक्षिण आफ्रिकाकी प्रधान भारतीय पेढ़ी एन० सी० कमरुद्दीन ऐंड कम्पनीके प्रबन्धकर्त्ता साझेदार हैं। उनको पिछले सप्ताह जोहानिसबर्गमें पटरीसे नीचे उतर कर चलनेकी आज्ञा दी गई थी। वे अड़ गये और हटनेको तैयार नहीं हुए । परन्तु इसके कारण उनको बड़ा अपमान सहना पड़ा। अब यह मामला पुलिस कमिश्नरके सामने है। वास्तविकता यह है कि जबतक पटरीका उपनियम कानूनकी किताबमें लिखा रहेगा तबतक इस प्रकारकी घटनाएँ होती ही रहेंगी ।

नेटालमें थोड़ा-सा प्लेग फैल गया है। अधिकारियोंने उसे ही वहाँसे भारतीय लोगोंका यहाँ आना रोकनेके लिए एक बहाना बना लिया है। इसका फल यह हुआ है कि जिन शरणार्थी भारतीयोंको यहाँ आकर अपना दावा साबित करना पड़ता है वे भी बाहर हो रह गये हैं, जबकि यूरोपीय और काफिर निर्बाध चले आ रहे हैं। ध्यान देनेकी बात यह है कि प्लेगका आक्रमण तो सभी वर्गोपर हो रहा है।

उपर्युक्त तो भारतीय शिकायतोंकी लम्बी तालिकामेंसे चुनी हुई कुछ बातें हैं। ये सिर्फ भावनाकी बातें नहीं, सब सच्ची और प्रामाणिक हैं। ये जीवन-मरणके संघर्षको प्रकट करती हैं।

युद्धके समय जब हमने सब मतभेद भुलाकर स्वयंसेवकोंका आहत सहायक दल बनाया था तब तो हम "आखिरकार साम्राज्यकी सन्तान ही" थे। युद्ध छेड़नेका एक कारण हमारी शिकायतें भी थीं और उन्होंने लॉर्ड लैन्सडाउनका खून खौला दिया था।

अब भावी प्रवासियोंका प्रश्न भी सामने नहीं है। प्रश्न तो उन निवासियोंका है जिनके विषयमें श्री चेम्बरलेनने भारतीय प्रतिनिधिमण्डलको विश्वास दिलाया था कि वे “न्यायोचित और सम्मानास्पद व्यवहारके अधिकारी हैं।"

हमें यह कहनेमें संकोच नहीं कि पुराने गणतन्त्री शासनके अधीन समाजके अधिकसे-अधिक अन्धकारमय दिनोंमें भी उसके साथ वह व्यवहार नहीं किया गया था जिसका सामना उसे अब करना पड़ रहा है। एक और बात यह है कि तब ब्रिटिश सरकार किती भी गम्भीर अन्यायका प्रतिरोध करनेके लिए अमोघ ढालका काम दिया करती थी। परन्तु पहले जिधरसे हमारी रक्षा हुआ करती थी अब उधरसे ही आक्रमण होने लगे, तो हम उससे बचनेके लिए ढाल कहाँसे लायें ?

ऑरेंज रिवर उपनिवेश

ऑरेंज रिवर कालोनीमें पुराने कड़े कानूनोंपर अमल अब भी हो रहा है। उनमें ढील कोई नहीं हुई। सरकार अपवाद भी किसीके लिए नहीं कर रही, और यह बतलानेसे इनकार करती है कि इन कानूनोंका सुधार या अन्त कब किया जायेगा। इन कानूनोंके बननेसे पहले जो भारतीय वहाँ व्यापार किया करते थे उनको भी व्यापार नहीं करने दिया जा रहा है।

केप कालोनी : ईस्ट लन्दन

यहाँ भारतीयोंकी संख्या थोड़ी ही है, इसलिए उन्होंने हमारे यहाँकी समितिसे सहायताकी प्रार्थना की है । १८९५ में ईस्ट लन्दनकी नगरपालिकाको जब काले लोगोंको पटरियोंपर