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नये उपनिवेशोंमें भारतीयोंकी स्थिति

चलनेसे रोकनेके नियमोपनियम बनानेका अधिकार मिला तब वहाँ भारतीय बस्ती बहुत ही थोड़ी थी। इस कारण तब इस कानूनपर किसीका ध्यान नहीं गया। पिछले महीने, वहाँकी नगरपालिकाने उक्त अधिकारका प्रयोग करके एक उपनियम बना दिया, और अब वहाँके भारतीयोंको पटरियोंसे उतर कर चलनेके अपमानका सामना करना पड़ रहा है। जो लोग इस नगरमे ७५ पौंडतकके मूल्यकी भूमिके पंजीकृत (रजिस्टर्ड) मालिक हों, या उतनी भूमिपर काबिज हों, वे इस उपनियमके प्रभावसे मुक्त हैं। ज्यों ही भारतीयोंको इस नियमका पता लगा त्यों ही वे गवर्नरके पास दौड़े गये । परन्तु गवर्नरने जवाब दिया कि अब तो मौका हाथसे निकल चुका । अब वे क्या करें ? उन्होंने गवर्नरकी सेवामें एक प्रार्थनापत्र फिर भेजा है और अपने मित्रोंको लन्दन तार दिया है। यह उपनियम बनानेका कारण काफिरोंका कथित या वास्तविक औद्धत्यपूर्ण और कभी-कभी अशिष्ट व्यवहार है। काफिरोंके विषयमें चाहे जो कुछ कहा जाये, भारतीयोंके विषयमें आजतक किसीने कानों-कान भी यह नहीं कहा कि वे शिष्टताके विपरीत व्यवहार करते हैं। जैसा कि संसारके इस भागमें प्रायः होता है, उन्हें जरा भी उचित कारणके बिना काफिरोंके साथ घसीट लिया गया है।

नेटाल

नेटालमें गिरमिटिया भारतीयोंके बालकोंपर कर लगानेके विधेयकको, हमारी आशाओंके विपरीत, सम्राट्की स्वीकृति मिल गई दीखती है।

टिप्पणी

जहाँतक ट्रान्सवालका सम्बन्ध है, यह कह देना अनुचित न होगा कि उपर्युक्त विभिन्न मामलोंमें भारतीय समाजने गवर्नरसे फरियाद की है। परमश्रेष्ठ अभी उसपर विचार कर रहे हैं।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडिया ऑफ़िस : ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ४०२ ।