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पत्र : उपनिवेश सचिवको

अपवाद किया जा सकेगा, जो अपनी बौद्धिक उन्नति अथवा सामाजिक गुणों और रहन-सहनकी आदतोंके कारण उसके अधिकारी जान पड़ेंगे; और इसलिए उन्होंने निश्चय किया है कि जो एशियाई, उपनिवेश-सचिवको प्रमाणपूर्वक सन्तुष्ट कर देगा, कि उसके पास इस या अन्य किसी ब्रिटिश उपनिवेश अथवा ब्रिटेनके अधीन देशके शिक्षा विभागका दिया हुआ उच्च शिक्षणका प्रमाणपत्र है, अथवा वह रहन-सहनका ऐसा तर्ज अपनानेके लिए समर्थ और इच्छुक है जो यूरोपीय विचारोंको नापसन्द और स्वास्थ्यके नियमोंका विरोधी न हो, वह उपनिवेश सचिवसे छूटका पत्र देनेकी प्रार्थना कर सकेगा; और उस पत्रके मिल जानेपर वह एशियाइयोंके लिए विशेष रूपसे पृथक किये हुए स्थानके अतिरिक्त भी कहीं रह सकेगा ।

डब्ल्यू० एच० मूअर
(सहायक उपनिवेश सचिव )

उपनिवेश-सचिवका कार्यालय,

प्रिटोरिया, ८ अप्रैल, १९०३
[ अंग्रेजीसे ]

इंडिया, १५-५-१९०३

२२६. पत्र : उपनिवेश-सचिवको

ब्रिटिश इंडियन असोसिएशन

बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
अप्रैल २५, १९०३

सेवामें

माननीय उपनिवेश-सचिव
प्रिटोरिया

श्रीमन,

एक पत्रका निम्नलिखित अनुवादित अंश मैं आपके ध्यानमें लाना चाहता हूँ। यह पत्र हाइडेलबर्गके भारतीय निवासियोंने ब्रिटिश भारतीय संघ (ब्रिटिश इंडियन असोसिएशन) को भेजा है और इसपर इसी महीनेकी २३ तारीख पड़ी है ।

आज सवेरे ५-३० बजे पुलिसके सिपाहियोंने प्रत्येक वस्तु-भाण्डारको घेर लिया। वे दरवाजे खोलकर अन्दर घुस आये और कमरोंमें जो लोग सो रहे थे उन सबको उन्होंने जगा दिया, और 'बाहर निकलो, बाहर निकलो' चिल्ला-चिल्ला कर उन्हें भयभीत कर दिया । उनको न तो मुंह-हाथ धोने दिया और न चाय-नाश्ता करने दिया। बहुतोंने यह सोचकर अपनी दूकानें ६ बजे खोलीं कि दो या तीन व्यक्ति दूकानोंमें रह जायेंगे और दूसरे पुलिसके साथ जायेंगे। परन्तु मालिक पहले ही पकड़ लिये गये थे । जब आदमियोंने दूकानोंको बन्द करनेसे इनकार किया तब पुलिसने उन्हें बाहर घसीट कर स्वयं दरवाजे बन्द कर दिये, उन्हें चाबियाँ पकड़ा दीं और फिर अपने हमराह कर लिया । इस तरह हर आदमी गिरफ्तार कर लिया गया, जैसे कि वह कोई अपराधी हो । एक ही अन्तर था कि हम लोगोंके हथकड़ियाँ नहीं लगाई गई थीं ।