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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

इस तरह सब लोग ८ बजे सवेरे अभियोग-कक्ष (चार्ज आफिस) में ले जाये गये और हिरासतमें रखे गये। प्रत्येक व्यक्ति पृथक् रूपसे दफ्तरके कमरेमें ले जाया गया, उससे परवाना दिखानेको अथवा उस देशका स्थायी निवासी रह चुकनेका सबूत देनेको कहा गया। जो अपने दावोंको सिद्ध कर सके उन्हें नये परवाने दिये गये। उसके बाद उन्हें सदर दरवाजेसे विदा किया गया। परवाने पा चुकनेपर भी पहले-पहल वे लोग रोके गये थे, परन्तु जब हमने इसका प्रतिवाद किया तब वे जाने पाये। इस तरह जो मुक्त किये गये थे, उनसे वे लोग, जो बन्धनमें थे, कोई बातचीत नहीं करने पाये । इस तरह, सवेरेसे जो लोग हिरासतमें ले लिये गये हैं, वे वैसे ही भूखे-प्यासे बने हैं और अभी १२.३० बजे दोपहरतक रिहा नहीं किये गये हैं। यह पत्र १२.३० बजे दोपहरमें लिखा जा रहा है। अभी कुछ व्यापारी हिरासतमें हैं। सम्मानित भारतीय दुकानदारोंकी बड़े सवेरे गिरफ्तारी और सड़कोंसे उनके पैदल चलाकर ले जाये जानेका दृश्य शहरमें सामान्य चर्चाका विषय बन गया है ।

इस तरह पुलिसने अभद्रतापूर्वक और बिना आज्ञाके सब कमरोंमें प्रवेश किया और हमारी इस चेतावनीपर कि कुछ कमरोंमें परदानशीन स्त्रियाँ हैं, बिलकुल ध्यान नहीं दिया। जब उनसे पूछा गया कि हम किस हुक्मसे गिरफ्तार किये जा रहे हैं तब जवाब मिला --- 'कप्तानके हुक्म से; औरतों और बच्चोंको छोड़कर हम हर एकको ले चलेंगे और अगर तुम खुशीसे नहीं चलोगे तो हम जबरदस्ती ले चलेंगे।' उनसे लिखित आज्ञा दिखाने को कहा गया; पर उन्होंने इनकार कर दिया।

यह तो हाइडेलबर्गमें पुलिसके व्यवहारका विवरण है। मैं बता दूं कि एक ऐसी ही घटना जोहानिसबर्गमें भी घटी थी। मामला कप्तान फाउलके ध्यानमें लाया गया था और खयाल यह किया गया था कि दुबारा ऐसी कोई बात न होगी। फिर भी पाँचेफस्ट्रममें यह दोहराई गई। तब भी हमने इसे चुपचाप गुजर जाने दिया । परन्तु अब हमारी समितिके लिए चुप रहना असम्भव हो गया है।

पुराने शासनके हमारे बुरेसे-बुरे दिनोंमें भी हम ऐसे शारीरिक दुर्व्यवहारोंके शिकार नहीं बनाये गये । जहाँतक मेरी समितिको पता है, हमारे समाजने कोई अपराध नहीं किया है; फिर भी उसे लोगोंकी दुर्भावना और उसका परिणाम ही नहीं, बल्कि अब तो उनका दुर्व्यवहार भी भोगना पड़ रहा है, जिनसे हमारी रक्षाको आशा की जाती है।

मेरी समिति विनम्रतापूर्वक जाँचकी प्रार्थना करती है और चाहती है कि पुलिसके जिस दुर्व्यवहारका ऊपर उल्लेख किया गया है उसपर सरकार अपनी सम्मति प्रकट करे ।

आपका आज्ञाकारी सेवक,
अब्दुल गनी
अध्यक्ष
ब्रिटिश भारतीय संघ

[ अंग्रेजीसे ]
रैंड डेली मेल, २८-४-१९०३