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२२८. पत्र : लेफ्टिनेंट गवर्नरको[१]

ब्रिटिश इंडियन असोसिएशन

बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
मई १, १९०३

सेवा में

निजी सचिव
परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर
प्रिटोरिया

श्रीमन्,

मैं ब्रिटिश भारतीय संघ (ब्रिटिश इंडियन असोसिएशन) की ओरसे संलग्न प्रार्थनापत्र[२] प्रेषित कर रहा हूँ । परमश्रेष्ठके नाम लिखा गया यह प्रार्थनापत्र उनकी सेवामें प्रेषित कर देनेका काम श्री विलियम हॉस्केन और जोहानिसबर्गके अन्य प्रमुख निवासियोंने, जिनके नाम प्रार्थना-पत्रके अन्तमें दिये गये हैं, संघको सौंपा है।

प्रार्थनापत्र प्रेषित करते हुए मैं बता दूँ कि इस प्रार्थनापत्रका कारण उल्लिखित महानुभावोंसे संघका यह निवेदन है कि वे १९०३ की विज्ञप्ति ३५६ के बारेमें अपने विचार सरकारके सामने रखें और सामान्यतः भारतीय प्रश्नके बारेमें अपना मत प्रकट करें। यह उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक किया है।

मैं यह उल्लेख करनेकी आज्ञा चाहूँगा कि समस्त यूरोपीयोंने, जिनके सम्पर्कमें हम आये हैं, वैसे ही भाव व्यक्त किये हैं जैसे कि इन प्राथियोंके हैं। जिन्होंने ऐसा नहीं किया उन यूरोपीयोंकी संख्या बहुत ही कम है। कुछने विज्ञप्तिको ठीक माना है । परन्तु इसका कारण यह है कि वे, जो कानून लागू करना है, उसकी स्थितिसे अनभिज्ञ हैं। साथ ही इसके अर्थकी वास्तविक व्याप्तिके बारेमें उन्हें भ्रम है ।

प्रार्थनापत्रकी विषय-वस्तुकी हदतक मेरी समिति थोड़े रूपान्तर के साथ उस विधानके सिद्धान्तको माननेके लिए तैयार हो जायेगी जिसे प्रार्थियोंने नमूनेके तौरपर प्रस्तुत किया है । सामान्यतः सम्बन्धित विज्ञप्तिके उद्देश्य की पूर्ति इससे हो जायेगी । और निश्चय ही परवाने देनेके कार्यको नियमित करनेमें ब्रिटिश भारतीयोंके अत्यन्त उत्कट विरोधीको भी इससे सन्तोष हो जायेगा। क्योंकि, इसके अनुसार अत्यावश्यक मामलोंमें सर्वोच्च अदालतका नियन्त्रण रहेगा और शेष सभी नये परवानोंके जारी करनेका नियम चुनी हुई लोकप्रिय संस्थाएँ बनायेंगी और इसके साथ ही वे कानूनको किताबसे सम्राट्के भक्त भारतीय प्रजाजनोंको अनावश्यक रूपसे अपमानित करनेवाले वर्तमान विधानको हटायेंगी। इसके सिवा यह प्रस्तावित विधान भावी प्रवासको नियमित करेगा, जिसकी विज्ञप्तिमें व्यवस्था नहीं है ।

उक्त यूरोपीय सज्जनोंसे बात करके मेरी समितिने यह भी मालूम किया है कि उनका विरोध भारतीयों के प्रति उतना नहीं है जितना कि चीनियोंके प्रति है।इसका एक ज्वलन्त

  1. इस पत्रकी एक नकल गांधीजीने भारतमन्त्रीकी सेवामें प्रेषित करनेके लिए दादाभाई नौरोजीको भेजी थी।
  2. देखिए सहपत्र, अगला पृष्ठ।