उदाहरण यह है कि, जब दक्षिण आफ्रिका संघ (साउथ आफ्रिका लीग) की जोहानिसबर्ग शाखा द्वारा प्रकाशित पर्चेमें छपा एशियाइयों-सम्बन्धी वक्तव्य उक्त संघकी कार्यकारिणीके ध्यानमें लाया गया तब उसके सदस्योंने तुरन्त ही स्वीकार किया कि एशियाई शब्दका प्रयोग भूलसे हुआ है । उनकी आपत्ति पूर्णरूपसे चीनियोंके खिलाफ थी, ब्रिटिश भारतीयोंके खिलाफ बिलकुल नहीं ।
आपका आज्ञाकारी सेवक,
अध्यक्ष
ब्रिटिश इंडियन असोसिएशन
इंडिया ऑफिस : ज्यूडिशियल ऐंड पब्लिक रेकर्ड्स, ४०२ ।
नीचे ब्रिटिश भारतीय संघ ( ब्रिटिश इंडियन असोसिएशन) के उपर्युक्त प्रार्थनापत्रमें उल्लिखित डब्ल्यू० एम० हॉस्केन और अन्य लोगोंके हस्ताक्षरोंसे दी गई अर्जीका मजमून प्रस्तुत है :--
परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नर
ट्रान्सवाल
नीचे हस्ताक्षर करनेवाले ट्रान्सवाल उपनिवेशवासियोंका प्रार्थनापत्र
नम्र निवेदन है कि,
प्रार्थियोंने एशियाइयोंके बारेमें हालमें प्रकाशित सरकारी विज्ञप्ति पढ़ी है और इस प्रश्नपर वे विनीत भावसे अपनी सम्मति नीचे लिखे अनुसार प्रकट करना चाहते हैं :
१. प्रार्थी यह आवश्यक मानते हैं कि उपनिवेशमें एशियाइयोंका देशान्तरवास कानून द्वारा विनियमित किया जाना चाहिए, और इसलिए वे सुझाव देते हैं कि वर्तमान एशियाई विरोधी विधानके स्थानपर नेटाल-अधिनियम या केप-अधिनियमकी सुविधासे नकल की जा सकती है। यह वर्ग और रंगके प्रश्नका अन्त कर देगा; साथ ही इससे किसी राष्ट्रके अवांछनीय लोगोंके बड़ी संख्यामें आनेका भय भी नहीं रहेगा ।
२. परन्तु प्रार्थियोंको उल्लिखित विज्ञप्ति, यदि उद्देश्य उसे स्थायित्व प्रदान करनेका है, स्वर्गीया सम्राज्ञीकी युद्धके पहलेकी घोषणाओंके विपरीत जान पड़ती है, क्योंकि तब उनकी सरकार, जहाँतक ब्रिटिश भारतीयोंका सम्बन्ध था, भूतपूर्व गणराज्यके एशियाई-विरोधी कानूनोंके विरुद्ध थी और उसने इन कानूनोंको लागू करनेका विरोध किया था ।
३. जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है, प्रार्थी उपनिवेशमें भारतीयोंकी अनियन्त्रित वादको उचित नहीं मानते, किन्तु साथ ही उनकी सम्मतिमें वर्तमान निवासी न्याययुक्त और सम्मानपूर्ण व्यवहारके अधिकारी हैं ।
४. वर्तमान परवानोंको एक व्यक्तिसे दूसरे व्यक्ति, या एक स्थानसे दूसरे स्थानके नाम बदलने की इजाजत न देना वर्तमान परवानेदारोंको भारी घाटा सहने और आगे-पीछे अपना कारोबार बन्द कर देनेपर बाध्य करनेके समान है ।
५. विचाराधीन विज्ञप्तिसे यह स्पष्ट नहीं है कि समस्त वर्तमान परवाने समय-समयपर नये किये जायेंगे या नहीं। उन भारतीयोंको जिन्हें गत वर्ष ब्रिटिश अधिकारियोंसे परवाने मिले थे, निर्दिष्ट बाजारोंके बाहर व्यापार करने की अनुमति न देना, उनके साथ अन्याय करना होगा।
- ↑ यह २५-९-१९०३ के इंडियामें छपा था ।