पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/३६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३२०
सम्पूर्ण गांधी वाङमय

६. आपके प्रार्थियोंके विनम्र मतसे इस पेचीदा सवालका सर्वोत्तम हल यह होगा कि नेटाल्फी तरह नगर परिषदों या स्वास्थ्य निकायोंको अधिकार दे दिया जाये कि वे नये प्रार्थियोंको परवाने दें अथवा न दें । परन्तु इसके दुरुपयोगसे बचनेके लिए पीड़ित पक्षको उनके निर्णयोंके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालयमें अपील करनेका अधिकार रहे । चालू, परवानोंका बदला जाना भी साल-ब-सालकी सफाई-रिपोर्टपर आधारित हो ।

७. आपके प्रार्थियोंके विनम्र मतसे इस उपनिवेशमें रहनेवाले ब्रिटिश भारतीय व्यवस्थाप्रिय, कानूनको माननेवाले और समाजके उपयोगी अंग हैं। वे ईमानदारी और संजीदगीमें उनके सर्वथा समान है जो ब्रिटिश प्रजा नहीं हैं और फिर भी जो व्यापार और अन्य अधिकारोंका पूर्ण उपभोग करते हैं ।

८. स्पष्ट है कि भारतीय एक जरूरी कमीको पूरा करते हैं क्योंकि सामान्य जनता उनकी समर्थक है । इसलिए प्रार्थी निवेदन करते हैं कि जो तर्क यहाँ प्रस्तुत किये गये हैं उनको दृष्टिमें रखते हुए प्रस्तावित विज्ञप्ति पर पुनः विचार हो अथवा सम्राटके भारतीय प्रजाजनोंको अन्य उचित सहायता प्रदानकी जाये । न्याय और दयाके इस कार्यके लिए आपके प्रार्थी, कर्तव्य समझकर, सदैव दुआ करेंगे, आदि-आदि ।

जोहानिसबर्ग, अप्रैल, १९०३

डब्ल्यू ० एम० हॉस्केन
एल० डब्ल्यू० रिच
और अनेक अन्य

[ अंग्रेजीसे ]

२२९. तार: "इंडिया" को[१]

जोहानिसबर्ग
मई ९, [१९०३ ]

छः तारीखको ट्रान्सवालके सब भागोंके भारतीयों की सार्वजनिक सभा हुई । उसमें भू० पू० गणराज्य के भारतीयोंको बाजारों आदिमें सीमित करनेवाले भारतीय-विरोधी कानून लागू करनेके विरोधमें सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पास किया गया। आधार यह था कि इन कानूनों को लागू करना सरकारकी उन घोषणाओंसे असंगत है जो कि उसने युद्ध छिड़नेपर और उसके बाद की थीं; और ये कानून १८५७की घोषणा[२] और ब्रिटिश नीतिके, यहाँ तक कि, स्वशासित उपनिवेशोंमें भी ब्रिटिश नीतिके विरुद्ध हैं ।

प्रस्तावके अन्तमें सरकारसे इन कानूनोंको रद करके इनके स्थानपर ब्रिटिश परम्पराओंसे संगत कानूनोंकी प्रार्थना की गई।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडिया, १५-५-१९०३
  1. यह 'एक संवाददाता द्वारा प्रेषित' रूपमें प्रकाशित हुआ था ।
  2. स्पष्टतः यह भूल है; उक्त घोषणा १८५८ में की गई थी।