पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/३६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

२३०. टिप्पणियाँ : अबतककी स्थितिपर

पो० ऑ० बॉक्स ६५२२
जोहानिसबर्ग
मई ९, १९०३

विज्ञप्ति ३५६[१] अभी जारी है । साथके सब पत्र अधिकतम महत्त्वके हैं ।

हाइडेलबर्गमें पुलिसकी कार्रवाइयोंकी शिकायत[२] (सहपत्र १)से भारतीय समाजका महान धैर्य प्रकट होता है । जोहानिसबर्ग और हाइडेलबर्गमें पुलिसके अत्याचारपूर्ण कार्योंको पीड़ितोंके प्रतिवाद करनेपर भी हमने इस आशासे नजरअन्दाज कर दिया कि यह उदाहरणीय सहनशीलता निकट सम्बन्धित अधिकारियोंके मनपर अच्छा असर डालेगी। जाहिर है कि इस मौनको उन्होंने गलत समझा । इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि हाइडेलबर्गकी घटनापर और गंभीरताके साथ विचार किया जाये । सरकार इसकी जाँच कर रही है और परिणामकी उत्सुकताके साथ प्रतीक्षा की जा रही है ।

सहपत्र नं० २[३] से प्रकट होता है कि यूरोपीय समुदायके अत्यंत प्रतिष्ठित लोग भारतीयोंके साथ न्याय किया जानेके विरुद्ध नहीं है। श्री विलियम हॉस्केन, जो प्रार्थनापत्रके प्रथम हस्ताक्षरकर्ता हैं, ट्रान्सवालके एक अति प्रमुख नेता हैं । हालकी ब्लूमफॉटीन-परिषदमें वे प्रतिनिधिकी हैसियतसे शामिल थे और नई विधान परिषदके गैर-सरकारी नामजद सदस्य हैं। दूसरे सब हस्ताक्षरकर्ता भी ऊँची-ऊँची हैसियतके व्यापारी हैं । यह प्रार्थनापत्र अब परमश्रेष्ठ लेफ्टिनेंट गवर्नरके हाथोंमें है ।

सहपत्र ३ और ४[४] भारतीय समाजके भावोंकी तीव्रता प्रकट करते हैं । उस विशाल भवनके प्रत्येक भागमें लोग भरे थे। जिस बातको हम सबसे अधिक अनुभव करते हैं, वह द्वेषजनित असुविधा नहीं है, बल्कि वह घोर अपमान है जो भारतीयोंको एक वर्गके रूपमें निर्दिष्ट स्थानों या बाजारोंमें रहनेके लिए बाध्य किये जानेके कारण सहना पड़ रहा है। वर्तमान कानून वर्गके रूपमें भारतीयोंपर एक ऐसा सिद्धान्त लागू करता है जिसका श्री चेम्बरलेन एकसे अधिक बार विरोध कर चुके हैं ।

नेटालके ढंगपर बना विधान इन शर्तोंके साथ मान्य होगा : (१) शिक्षा-सम्बन्धी कसौटीमें किसी एक भारतीय भाषाका ज्ञान शामिल होना चाहिए। यह कसौटी भी लाखों भारतीयोंको दूर रखेगी और यह लाखोंकी संख्या ही तो यूरोपीयोंके लिए हौआ बनी हुई है । सरकारके हाथमें यह अधिकार भी सुरक्षित रहना चाहिए कि वह उन भारतीयोंको विशेष अनुमति दे दे जो किसी भाषाका ज्ञान न रखते हुए भी स्थायी रूपसे बसनेवाले भारतीयोंके कामके लिए खास तौरसे आवश्यक हैं ।

(२) जहाँतक व्यापारियोंके परवानोंका प्रश्न है, वर्तमान परवानोंको छूना नहीं चाहिए । परन्तु नये आवेदन-पत्रोंका निपटारा, चाहे वे युरोपीयोंके हों चाहे भारतीयोंके, स्थानीय संस्थाओं द्वारा किया जाना चाहिए। शर्त यह है कि घोर अन्यायके मामलोंमें सर्वोच्च अदालतको उनके

  1. देखिए " दक्षिण आफ्रिकाके ब्रिटिश भारतीय, ” १२-४-१९०३ का सहपत्र |
  2. देखिए "पत्र: उपनिवेश सचिवको", अप्रैल २५, १९०३ ।
  3. देखिए " पत्र : लेफ्टिनेंट गवर्नरको, ” भई १, १९०३ का सहपत्र
  4. यह हवाला सभाकी अखबारी रिपोटोंका है, जो यहाँ नहीं दी जा रही हैं ।