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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अनुमति-पत्र ले लेने चाहिए। भारतीय समाजको पासों और अनुमति पत्रोंकी लगातारकी हेरा-फेरीसे राहत देनेकी आवश्यकता है ।

यह है हमारी स्थिति और हम परमश्रेष्ठकी सेवामें वर्तमान परवाना-पद्धति और ३ पौंडी व्यक्ति-करसे मुक्तिकी प्रार्थना करनेके लिए ही आये हैं । यह कानून हमारे लिए अत्यन्त दुःखदायी है | सरकारने इसे लागू करके यह प्रकट कर दिया है कि वह इसे स्थायी कानून बना देना चाहती है। यह स्थिति हमारे लिए और भी दुःखद है। यह खुले तौरपर कहा गया है कि लड़ाईका एक कारण ट्रान्सवालकी पिछली सरकार द्वारा इस करको हटानेसे इनकार करना था। लेकिन आज हम क्या देखते हैं ? यही कि, नई सरकार सन् १८८५ का तीसरा कानून हमपर ऐसे रूपमें लागू करना चाहती है जैसा कि वह पिछली सरकारके दिनोंमें कभी लागू नहीं किया गया था। चूँकि स्थिति ऐसी है, इसलिए इसका मतलब यह होता है कि अब बाजारों और बस्तियोंके अतिरिक्त ट्रान्सवालमें अन्यत्र कहीं हमें जमीन-जायदाद रखनेकी अनुमति कभी नहीं दी जायेगी। मैं अत्यन्त आदरके साथ कहता हूँ कि यह ब्रिटिश संविधानके आधारभूत सिद्धान्तोंके बिलकुल विपरीत है। किसी भी अन्य ब्रिटिश उपनिवेशमें यह प्रचलित नहीं है। अब इस दिशामें एक नया शाही उपनिवेश मार्गदर्शन करा रहा है। मैं इस सिलसिले में एक दूसरी कठिनाईका भी उल्लेख करना चाहूँगा । प्रिटोरिया और जोहानिसबर्गमें जिन जमीनोंपर मसजिदें बनी हुई हैं वे बरसों पहले खरीदी गई थीं, परन्तु इस कानूनके कारण ये जमीनें भारतीयोंको नहीं दी जा सकतीं। हाइडेलबर्गकी मसजिदके सम्बन्धमें भी यही कठिनाई है । हमने लॉर्ड रॉबर्ट्ससे प्रार्थना की। उन्होंने बताया कि अभी यहाँ फोजी कानून लागू है; लेकिन उन्हें आशा है, गैर-फौजी हुकूमत आते ही तमाम ब्रिटिश प्रजाजनोंके साथ एक-सा व्यवहार किया जायेगा। फिर भी वर्तमान हुकूमत द्वारा ठीक यही कानून हमारे विरुद्ध लागू किया जा रहा है ।

इसके अलावा, बाहर जानेके पासोंपर फोटो लगानेकी परेशानी भी है। अगर कोई भारतीय किसी दूसरे उपनिवेशमें अपने मित्रसे भेंटके लिए जाना चाहता है तो उसे उस उपनिवेशमें जाने और वहाँसे वापस आनेका पास तभी दिया जा सकता है जब वह पहले अपने फोटोकी तीन नकलें एशियाई दफ्तरमें भेजे। ऐसे परवानोंका जाली प्रयोग रोकनेके लिए यह उपाय आवश्यक हो सकता है; परन्तु मैं अर्ज करना चाहता हूँ कि कुछ भारतीयों द्वारा परवानोंके जाली प्रयोगकी संभावनाके आधारपर यह मान लेना उचित नहीं है कि सभी भारतीय अपराधी प्रवृत्तिके होते हैं । जो ऐसी प्रवृत्तिके हों उन्हें जरूर पकड़कर कड़ी सजाएँ दी जायें। इस पद्धति तथा एशियाई दफ्तरकी संचालन विधिके विरुद्ध हमने बार-बार शिकायतें की हैं। स्टारमें एक मुलाकातका हाल छपा है। कहते हैं, इसमें वहाँके अधिकारीने कहा था कि इस दफ्तरका उद्देश्य एशियाइयोंके हितोंकी रक्षा करना नहीं, बल्कि श्वेत-संघके विचारोंको कार्य-रूप देना है।

जब श्री चेम्बरलेन यहाँ आये थे, तब भी ब्रिटिश भारतीयोंका शिष्ट-मंडल उनसे मिला था। श्री चेम्बरलेनने शिष्ट-मण्डलसे कहा था कि जबतक यूरोपीय लोगोंकी भावनाएँ भारतीयोंके अधिकारोंमें बाधक नहीं होती तबतक वे उन भावनाओंसे सहमत होकर चलना अपना कर्त्तव्य बना लें । हमने उनकी यह सलाह हृदयंगम कर ली है । लेकिन श्वेत-संघ माँग करता है कि भारतीय इस देशसे बिलकुल निकाल ही दिये जायें। मैं परमश्रेष्ठको विश्वास दिला सकता हूँ कि हम श्री चेम्बरलेनकी सलाह्का, जहाँतक वह हमारे स्वाभिमानपर चोट नहीं पहुँचाती, पालन करनेका प्रयत्न करते रहे हैं। मैं परमश्रेष्ठको श्री चेम्बरलेनके शब्दोंका स्मरण दिलाता हूँ। उन्होंने कहा था कि इस देशमें इस समय जो भारतीय हैं उनके साथ न्यायोचित और