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ब्रिटिश भारतीय संघ और लॉर्ड मिलनर

सम्मानपूर्ण व्यवहार किया जायेगा । अब हमारी माँग भी यही है । मैं समझता हूँ कि मुझे परमश्रेष्ठकी सेवामें इससे अधिक कुछ नहीं कहना है ।

श्री एच० ओ० अलीने शिकायत की कि हम जहाँ चाहते हैं वहाँ हमें व्यापार नहीं करने दिया जाता और हम अपने परवाने बदलवा नहीं सकते ।

इमाम शेख अहमदने कहा कि कुछ महीने पहले मैंने एक मुल्लाके लिए परवाना माँगा था; लेकिन मुझे साफ इनकार मिला । निश्चय ही कोई भी देश अपनी आबादीके एक वर्गके धार्मिक कृत्य करानेके लिए आनेवाले मुल्ला या पुजारीको प्रवेशकी अनुमति देनेसे इनकार नहीं कर सकता। मैंने सदा ही देखा है कि जब हम अफसरोंसे मिलनेके लिए किसी भी सरकारी दफ्तरमें जाते हैं तब हमारी राहमें बड़े रोड़े अटकाये जाते हैं। उदाहरणके लिए, मैं उपनिवेश सचिवसे मिलनेके लिए कभी अन्दर नहीं जा सका ।

लॉर्ड मिलनरने कहा: मेरा खयाल है, जो कुछ कहा गया है वह एशियाई-विभागकी स्थापनाकी आवश्यकता बताता है । यह हो सकता है कि वर्तमान एशियाई दफ्तर, जो एक नई संस्था है, बहुत अच्छी तरह काम न कर पा रहा हो। लेकिन मेरा विचार यह है कि इस देशमें बसे एशियाइयोंको अपने मामलोंकी सुनवाईके लिए उपनिवेश सचिवके जैसे व्यस्त कार्यालयका ध्यान खींचनेमें अन्य इतनी संस्थाओंसे स्पर्धा करनेके बजाय यदि एक विशेष सरकारी सदस्य मिल जाये तो यह उनके लिए बहुत ही सुविधाजनक होगा। मैं यह स्वीकार करता हूँ कि यह विशेष अफसर खुदको एशियाइयोंसे सम्बन्धित कानूनोंपर अमल करानेवाला व्यक्ति ही न समझे, बल्कि उनके हितोंका रक्षक भी समझे और जब वे कोई शिकायत लेकर पहुँचें तो उनके साथ अच्छी तरह पेश आये । मैं समझता हूँ कि इस तरहका एशियाई विभाग बहुत वांछनीय है और उसकी स्थापनासे फायदा ही होगा । आजकी चर्चाका विषय बहुत-कुछ ३ पौंडी कर ही रहा । मेरा खयाल है कि दूसरे अधिक महत्त्वपूर्ण विषयोंकी तुलनामें यह एक छोटी बात है । ३ पौंडी करपर इतना जोर देनेका कारण केवल यह है कि वह मौजूदा कानूनका हिस्सा है। मैं आपको यह भी बता दूं कि मैं उसे हर हालतमें मुनासिब मानता हूँ। जो कानून हमारे सामने जिस शक्लमें हैं उनको हम उसी शक्लमें लागू कर रहे हैं। लेकिन मैं आपको एक बात और बता दूं कि हम सन् १८८५ के तीसरे कानूनको सर्वांग-सम्पूर्ण बिलकुल नहीं मानते। मैंने हमेशा कहा है कि इस देशमें एशियाइयोंकी स्थितिका मुकाबला विशेष कानूनसे करना आवश्यक है; लेकिन मेरे विचारसे जिस कानूनके अन्तर्गत उनसे व्यवहार किया जाना चाहिए वह कानून सन् १८८५ के तीसरे कानूनसे बहुत बातोंमें भिन्न होगा। मैं नहीं जानता कि इस विशेष कानूनकी धाराएँ क्या हों, इस बारेमें हमारा पूरी तरह एकमत होना जरूरी है । परन्तु जबकि मेरा आपके साथ सभी बातोंमें सहमत होना जरूरी नहीं है, तब मैं एशियाइयोंके प्रति व्यवहारके बारेमें यहाँ जो बहुत-सी बातें सुनता हूँ या पत्रोंमें पढ़ता हूँ उनसे भी मेरा सहमत होना जरूरी नहीं है।

मेरा खयाल है कि यहाँके समाजके सामान्य हितकी दृष्टिसे एशियाइयों और अन्य लोगोंके प्रवेशपर रोक लगाने का हमें पूरा अधिकार है । यह प्रत्येक राज्यका स्वाभाविक अधिकार होता ही है । इसपर क्षण भरके लिए भी सन्देह नहीं किया जा सकता; लेकिन मैं यह खयाल करता हूँ कि जो एशियाई यहाँ हैं, या जिनको हम आगे इस देशमें आने दें, उनके साथ जरूर अच्छा बरताव होना चाहिए और उनको यह महसूस होना चाहिए कि उनके अधिकार यहाँ सुरक्षित हैं। मैं तो अबसे पहले ही यहाँ एक नया स्थायी कानून पास होनेकी आशा करता था, ताकि ब्रिटिश भारतीय या कोई भी दूसरा व्यक्ति अपने मनमें यह कह सके: "मैं जानता हूँ कि यदि ट्रान्सवालमें जाऊँ तो मुझे कुछ विशेष शर्तें माननी होंगी। और वैसा