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सम्पूर्ण गांधी वाङमय

करने पर मुझे कोई कठिनाई न होगी । साथ ही, जो लोग पहलेसे ही उपनिवेशमें हैं उनके प्राप्त अधिकारोंकी रक्षा भी हो जाती। लेकिन दुर्भाग्यवश इसमें विलम्ब हो गया है। आप स्वयं देख सकते हैं कि इस मामलेमें कानून पास करनेमें अब क्या कठिनाइयाँ हैं । विरोधी दृष्टिकोणोंको समीप लानेमें काल, वाद-विवाद और विचारकी शक्तिमें मुझे बहुत विश्वास है । परन्तु जैसे कानूनका सुझाव में देता हूँ उसपर अभी शायद ब्रिटिश सरकार मंजूरी न देगी, और शायद भारत सरकार भी उसका विरोध करे। दूसरी तरफ ब्रिटिश सरकार अपनी तरफसे कोई कानून सुझाये तो उसे शायद यहाँकी जनता स्वीकार न करे और यदि विधानसभा उसे पास भी कर दे तो उससे आपका विरोध जोर पकड़नेसे आपकी हालत ज्यादा खराब हो सकती है। इसके अलावा उपनिवेशको स्वराज्य मिलते ही वह निस्सन्देह फौरन रद भी हो जायेगा । गोरी आबादीके इतने बड़े विरोधके मुकाबले जोर-जबरदस्तीसे कोई काम करानेका प्रयत्न व्यर्थ होगा । इसलिए मैं सोचता हूँ कि यहाँ एक ऐसा कानून बनाया जा सकता है, जिससे आपकी माँगी सब तो नहीं, किन्तु बहुत-सी चीजें आपको मिल जायें। उससे श्वेत-संघ पूरी तरहसे संतुष्ट तो न होगा; परन्तु फिर भी गोरी आबादीके बहुत-से समझदार लोगोंको राजी करनेमें बहुत सहायता मिलेगी । इस बीच जो कानून अभी है उसपर अमलके लिए सरकारपर बार-बार जोर दिया गया है और सरकार भी जबतक वह कानूनकी पुस्तकमें है, इसके अलावा कुछ नहीं कर सकती। आप दलील देते हैं कि पिछली हुकूमतने कभी पूरी तरह उसपर अमल नहीं किया। पिछली ट्रान्सवाल-सरकारके इस तरीकेपर ही मुझे आपत्ति है । उसमें बेहद मनमानी थी। कानून लागू था; लेकिन वह अमलमें नहीं लाया गया। फिर भी तलवार तो सदा आपके सिर पर लटकती ही रहती थी। आपको कभी पता न चलता था कि आपके ऊपर क्या बीतनेवाली है। कुछ लोगोंसे कर वसूल किया जाता और कुछ छूट जाते थे । मैं तो एक बात कहता हूँ । जबतक करकी बात कानूनकी पुस्तकमें है तबतक सबको समान रूपसे कर चुकाना ही चाहिए ।

कहा गया है कि लेफ्टिनेंट गवर्नर साहबके विचारोंसे मेरी भावनाएँ भिन्न हैं । मैं नहीं समझता कि उनमें कोई असंगति है । उस दिन मैंने जो भाव प्रकट किये थे और जिनका हवाला आपने दिया है उनपर मैं आज भी कायम हूँ । परन्तु मैं साथ ही इस बातपर भी कायम हूँ कि आप वर्तमान स्थितियोंमें सन्तुष्ट रहें और जबतक यह कानून बदल नहीं दिया जाता तबतक इसका पालन करें। मैं नहीं मानता कि उसका अमल यहाँ कठोरताके साथ किया जा रहा है। वर्तमान सरकार यहाँ पहलेसे बसे हुए भारतीयोंका उचित ध्यान रख रही है। मेरे खयालमें उनका पंजीकरण (रजिस्ट्रेशन) उनकी रक्षाके लिए है । इस पंजीकरणके साथ ३ पौंडका कर लगा दिया गया है। यह भी केवल एक बार मांगा जाता है। पिछली हुकूमतको जिन्होंने कर दे दिया है वे केवल इसका प्रमाण पेश कर दें। फिर उन्हें दूसरी बार यह कर नहीं देना होगा। एक बार उनका नाम रजिस्टर पर चढ़ जानेके बाद उसे दूसरी बार दर्ज करानेकी अथवा नया परवाना लेनेकी जरूरत न होगी । इस पंजीकरणसे आपको यहाँ रहने और कहीं भी जाने और आनेका अधिकार मिल जाता है । इसलिए मुझे तो लगता है कि पंजीकरणमें आपकी रक्षा है। उससे सरकारको भी मदद हो जाती है। इसलिए जो भी कोई कानून बने मैं चाहूँगा कि उसमें पंजीकरणका विधान अवश्य शामिल रहे।

परमश्रेष्ठ लॉर्ड मिलनरने आगे कहा : अब रही बाजारों की बात । क्या बाजारोंकी बातको मान लेना भारतीयोंके लिए लाभदायक नहीं होगा --- बशर्ते कि ये बाजार अच्छे हों, अच्छी जगहपर हों और इनकी रचना भी ठीक हो ? मैं तो यह कहूँगा कि मेरे खयालसे एक बार