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ब्रिटिश भारतीय संघ और लॉड मिलनर

उनके अच्छी तरह कायम हो जानेपर उनमें जाकर शान्तिसे बस जानेमें भारतीयोंका साफ फायदा है, बजाय इसके कि जो लोग उन्हें नहीं चाहते उनके बीच और जहां-तहाँ बस कर वे अपने लिए विरोध खड़ा करें। जो भारतीय ऊँची श्रेणीके हैं अथवा जो दूसरी जगह बस गये हैं उन्हें इन बाजारोंमें बसनेके लिए मजबूर करना निःसन्देह उचित नहीं होगा। अगर कुछ श्वेत-संघी सज्जन यह चाहें कि सामाजिक दरजा और प्राप्त अधिकारोंका कुछ भी खयाल किये बगैर सब भारतीयोंको इन बाजारोंमें जबरदस्ती भेज दिया जाये, तो मैं कहता हूँ मैं उनसे सहमत नहीं हूँ । परन्तु यह उचित हो या अनुचित --- और मेरे खयालसे यह अनुचित नहीं--- गोरे समाजके लोग बड़ी संख्यामें और हर तरहके एशियावासियोंके अपने बीचमें आकर भर जानेसे नाराज होते हैं और वे इसका विरोध ही करेंगे ।

फोटो, मसजिदों और परवानोंसे सम्बन्धित प्रश्नोंके बारेमें आपने जो कहा उसको मैंनें टीप लिया है। आपने बताया कि मसजिदें आपके नामोंपर दर्ज करानेमें कठिनाइयाँ हैं । इन सबकी मैं जाँच करूँगा । मसजिदें आपके नामोंपर दर्ज कैसे हों, इसके बारेमें बारीक कानूनी अड़चनके सिवा और कोई कठिनाई होगी, ऐसा मेरा खयाल नहीं। इस विषयपर कानून बनाते समय, मुझे तो कोई शंका नहीं, हम पूजा और उपासनाके स्थान उन्हींके नामपर दर्ज किये जाने की व्यवस्था करेंगे जो उनका उपयोग करते होंगे। मेरा खयाल है, उन्हें उनके नामोंपर न रहने देना बहुत बड़ी कठोरता होगी । सामान्यतयामें ऐसी हरएक बातके विरुद्ध हूँ, जिससे एशियाइयोंका जीवन कष्टमय हो, या जिसमें उन्हें अपना अपमान लगे । क्या उनपर कोई पाबन्दियाँ लगाई जायें ? हाँ; सिर्फ नये प्रवेश और बसनेके विषयमें जो प्रतिबन्ध और नियम सारे समाजके हितको ध्यानमें रखकर लागू किये जायँ उनको छोड़ दीजिए। परन्तु इनमें भी जिनका सामाजिक दरजा ऊँचा माना जाता है अथवा जो पहले ही से कानूनके अनुसार कहीं बस गये हैं, उनका अपवाद तो होगा ही ।

परवानोंके बारेमें

आप कहते हैं कि प्राप्त अधिकारोंको भी हमने मान्य नहीं किया है। इसका कारण तो यह है कि युद्धके बाद बहुतसे लोग अनधिकृत रूपसे ट्रान्सवालमें घुस आये हैं । जो भारतीय युद्धसे पहले यहाँ थे उनके अधिकार हमने बराबर माने हैं। वे युद्धसे पहले जिन अहातोंमें थे उनके लिए अथवा उनके बदलेमें दूसरे किसी अहातेके लिए नये परवाने उन्हें बराबर दिये जाते हैं ।

सामान्य विचार-विनिमय

श्री गांधी : जिनको नये परवाने दिये गये हैं वे तो शरणार्थी हैं, जो उपनिवेशके दूसरे भागोंमें व्यापार करते थे । अब उन्होंने अपने लिए नये मकान और दूकानें बना ली हैं, और उन्हें वर्षके अन्तमें इन्हें छोड़ कर चले जाना पड़ेगा, क्योंकि सरकार उन्हें शायद नये परवाने नहीं देगी ।

लॉर्ड मिलनर : उनके असली परवाने बिलकुल दूसरी जगहोंके लिए थे। आज तो यह स्थिति है कि, मान लीजिए, एक भारतीयके पास युद्धसे पहले जोहानिसबर्गकी किसी एक सड़कपर मकानका परवाना था, तो या तो वह उसी परवानेको नया करवा सकता है या जोहानिसबर्गमें ही किसी दूसरी दूकानके लिए उसे बदलवा सकता है ।

श्री गांधी : मेरा मतलब यह है कि युद्धके पहले कुछ भारतीयोंके पास ट्रान्सवालके दूसरे हिस्सोंमें व्यापार करनेके परवाने थे । बीचमें युद्ध आ गया और वे शरणार्थी बनकर कहीं बाहर चले गये । अब लड़ाई खत्म होनेपर वे विभिन्न मुहल्लों में वापस लौट आये और वहाँ उन्होंने