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ब्रिटिश भारतीय संघ और लॉर्ड मिलनर

यह कहना बिलकुल वाजिब है कि कानूनका पालन होना ही चाहिए। यह बतानेकी जरूरत नहीं कि सरकारके दिलमें आपके खिलाफ कोई दुर्भाव नहीं है । हाँ, शायद वह महसूस करती है कि अब एशियासे अधिक व्यापारियोंको यहाँ आने देना अच्छा नहीं है । जो आकर बस गये हैं उनके बारेमें तो मैं यही कह सकता हूँ कि आशा है वे फूलते-फलते रहेंगे ।

श्री गांधी : यह भावना तो केवल परमश्रेष्ठ तक ही सीमित है। मसलन बन्दरगाह पर जहाजसे उतर कर यहाँ तक पहुँचनेमें एक भारतीयको तीन महीने लग जाते हैं ।

लॉर्ड मिलनर : एक बात तो पक्की है कि एक समय वह था जब अंग्रेजोंको छोड़कर दूसरे जितने लोग यहाँ आते थे उनकी सम्मिलित संख्यासे कहीं अधिक संख्यामें यहां भारतीय आते थे। मुझे कहना चाहिए, एक समय मुझे लगता था कि हम सोमासे बहुत आगे बढ़ रहे हैं और भारतीयोंको बहुत अधिक परवाने देते जा रहे हैं ।

एच० ओ० अलो : इसमें भूल रेलवे अधिकारियोंकी थी, क्योंकि उन्होंने सोचा कि अपने को शरणार्थी साबित करनेवाले सभी भारतीयोंको यहाँ तुरन्त वापसोका हक है। शान्ति-रक्षा अध्यादेश जारी होनेतक यह चलता रहा ।

लॉर्ड मिलनर : अब ३ पौंडी करकी बात फिर लें । इसके खिलाफ अभीतक तो कोई वाजिब दलील मैंने नहीं सुनी।

एच० ओ० अली : वह तो विशेष कर है। यूनानियों, आर्मीनियाइयों और कई दूसरी कौमोंको यह विशेष कर नहीं देना पड़ता । वे केवल १८ शिलिंग सालाना देते हैं, बस ।

लॉर्ड मिलनर : हाँ, परन्तु उन्हें यह कर हर साल देना पड़ता है, जब कि आप केवल एक बार ३ पौंड देते हैं और फिर खत्म कर देते हैं ।

एच० ओ० अली: लेकिन इस ३ पौंडके बदले हम १८ शिलिंग सालाना देना ज्यादा पसन्द करेंगे ।

लॉर्ड मिलनर : परन्तु इस मामलेमें किसीकी पसन्दका सवाल नहीं है। मौजूदा कानून कहता है, आपको ३ पौंड देना है और यह कानून लागू किया जाना है।

एच० ओ० अली: इस कानूनके खिलाफ हमने वर्षों अपनी आवाज उठाई है और हमारा तो खयाल है कि यदि कहीं अब हम इसके सामने झुक गये तो अपने मामलेको खुद ही कमजोर बना लेंगे ।

लॉर्ड मिलनर : आपको अपने विचार सुनानेका पूरा हक है। मैं तो केवल इतना ही कहता हूँ कि एक प्रचलित कानूनपर जब सरकार अमल करेगी और आप उसका विरोध करेंगे तब आप गलती पर होंगे ।

एच० ओ० अली: हम ऐसा कोई काम कभी नहीं करेंगे । इसीलिए तो हम परमश्रेष्ठकी सेवामें आये हैं। इस मामलेमें सरकारका जो भी निर्णय होगा हम उसका पालन करेंगे । परन्तु अगर हमारे खिलाफ किसीको यह एतराज हो कि हमारे मकान साफ-सुथरे नहीं होते तो मेरा खयाल है नगरपालिका और कड़े कानून बना दे और अपने निरीक्षकोंको हमारे मकानोंका निरीक्षण करनेके लिए भेजे। मैं तो समझता हूँ कि किसीपर भी दूसरी बार जुर्माना करनेकी नौबत नहीं आयेगी । और एक आदमीपर जुर्माना होते ही दूसरे सचेत हो जायेंगे ।

इस भेंटकी कृपाके लिए लॉर्ड मिलनरको धन्यवाद देकर शिष्ट-मण्डल विदा हो गया।

[ अंग्रेजीसे ]

इंडियन ओपिनियन, ११-६-१९०३