पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७.टिप्पणियां : परीक्षात्मक मुकदमेपर

यह और इसके बादके शीर्षककी सामग्री गांधीजीने परीक्षात्मक मुकदमेमें तैयब हाजी खान मुहम्मदकी ओरसे पैरवी करनेवाले वकीलकी मददके लिए लिखी थी।

{{rh|||[अप्रैल ४, १८९८ के पूर्व]}

प्रिटोरियामें मेरे सामने सरकारी वकीलने जो सम्मति प्रकट की थी उसका आदर करते हुए भी मेरा निवेदन है कि जिन भारतीयोंपर यह कानून लागू करनेका प्रयत्न किया जा रहा है वे, अधिनियमकी उपधारा १२ के अनुसार, इसके अन्तर्गत नहीं आते।

वह धारा है : “यह कानून एशियाके उन लोगोंपर लागू होगा जो किसी आदिम जातिके हों। तथाकथित कुली, अरब, मलायी और तुर्की साम्राज्यके मुस्लिम प्रजाजन भी उनमें ही गिने जायेंगे।"

मैं मानता हूँ कि इस धारामें आये हुए विभिन्न शब्दोंका अर्थ, अगर कानून में ही उनकी व्याख्या न हो तो, अदालत वही मानेगी जो कि 'शब्द-कोश' जैसे किसी प्रामाणिक ग्रन्थमें दिया होगा। आम लोग अज्ञान अथवा पक्षपातके कारण इनका जो अर्थ लगाने लगेंगे उसे अदालत नहीं मानेगी।

यदि यह ठीक हो, तो 'एशियाकी आदिम जातियों' का मतलब इतिहासका कोई ग्रन्थ देखनेसे ही ज्ञात हो सकता है। हंटरके 'इंडियन एम्पायर' [भारतीय साम्राज्य ] ग्रन्थका तीसरा और चौथा अध्याय देखते ही पता चल जाता है कि आदिम जातियाँ कौन-सी हैं और कौन- सी नहीं। वहाँ यह बात इतनी स्पष्टतासे बताई गई है कि दोनोंमें अन्तर करनेमें भूल किसीसे भी नहीं हो सकती। पुस्तकसे एकदम पता चल जायेगा कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय इंडो-जर्मन नस्लके, अथवा अधिक ठीक शब्दका प्रयोग करें तो, आर्य वंशके है। मैं जहाँतक जानता हूँ, इस विचारका विरोध किसी अधिकारी विद्वानने नहीं किया। मॉरिस और मैक्स- मूलरकी पुस्तकोंमें भी इसी विचारका समर्थन किया गया है। ये पुस्तकें प्रिटोरियामें सरलतासे मिल सकती है। यदि इन शब्दोंका यह अर्थ नहीं माना जाता तो मैं नहीं समझता कि इनका और क्या अर्थ करना चाहिए।

'ग्रीन बुक्स' [हरी किताबों ] को देखने से पता चलेगा कि सर हक्युलीज़ राबिन्सन ने भी (मुझे नामका निश्चय नहीं है) कुछ इसी प्रकारके कारणोंसे भारतीय व्यापारियोंको इस धाराका अपवाद माना है। और यदि गणराज्यके भारतीयों की गणना एशियाकी आदिम जातियों" में नहीं की जाती, तो उन्हें कुलियों, अरवों, मलाइयों और तुर्की साम्राज्यके मुस्लिम प्रजाजनोंमें तो गिना ही नहीं जा सकता।

वे कुली या अरब है या नहीं? यदि पुस्तकों और खरीतोंपर भरोसा किया जाये तो वे इन दोनोंमें से कुछ भी नहीं हैं। यहाँ कोष्ठकमें इतना और बढ़ा देना चाहिए कि यदि यह कानून सचमुच भारतीयोंपर भी लागू करनेका इरादा होता तो उनका नाम भी इसमें

१. देखिए अगले शीर्षककी सामग्रीका अन्तिम अनुच्छेद ।

२. १८८५ का कानून ३, जैसा १८८६ में संशोधित हुआ था ।

३. गांधीजीके हस्ताक्षरों में हाशियामें यह लिखा हुआ है : “ग्रीन वुक नं०१,१८९४, पृष्ठ २८,

अनुच्छेद ७ ३ ८, और पृष्ठ ३६ भी।"

< Gandhi Heritage Portal