पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 3.pdf/३९

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टिप्पणियां : परीक्षात्मक मुकदामेपर

शामिल करके यह स्पष्ट कर दिया गया होता। और यदि यह बात सन्दिग्ध छोड़ दी गई है तो उसका अर्थ भारतीयोंके पक्षमें किया जाना चाहिए, क्योंकि यह एक प्रतिबन्धक कानून है । वेस्टरके शब्द-कोशके अनुसार, 'कुली' शब्दका अर्थ है माल ढोने या उठाकर ले जानेवाला भार- तीय, विशेषतः भारत या चीन आदि देशोंसे किसी दूसरे देश में ले जाया गया मजदूर । ठीक इसी अर्थमें इस शब्दको नेटालके कानूनोंमें और अन्य सरकारी कागजातमें प्रयुक्त किया गया है। विन्दन बनाम लेडीस्मिथ लोकल बोर्ड मुकदमेका फैसला करते हुए सर वाल्टर रैगने इस प्रश्नपर खासी तफसीलसे विचार किया है। उस मुकदमेकी पूरी रिपोर्टकी नकल इसके साथ नत्थी है। देखिए, उसके पृष्ठ १०, ११ और १२।'

इस गणराज्यके निवासी भारतीय अरब नहीं है, इस दावेके समर्थनमें कोई प्रमाण देनेकी आवश्यकता नहीं है। वे अरब देशके कभी नहीं रहे, और जिन भारतीय मुसलमानोंको लोग भूलसे अरब कह देते हैं वे पहले हिन्दू थे, अपना धर्म बदल कर वे मुसलमान बन गये। जिस प्रकार कोई चीनी बौद्ध धर्म छोड़कर ईसाई धर्म स्वीकार कर लेने मात्रसे यूरोपीय नहीं हो जाता उसी प्रकार धर्म-परिवर्तन मात्रसे भारतीय भी अरब नहीं हो सकते।

कानूनमें 'कुली' शब्दके पहले 'तथाकथित' शब्द आया है। उसके कारण, मैं नहीं समझता कि, जो कुछ ऊपर कहा गया है उसका मतलब कुछ बदल जायेगा।

अंग्रेजी दफ्तरी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ३७०५) से ।

सर वाल्टर रैगका फैसला

न्यायमूर्ति रैग: मुझे लगता है कि महत्त्वपूर्ण प्रश्न, जो अदालतके सामने फेसलेके लिए सीधा पेश किया गया है, यह है कि १८६९ के कानून १५ के अर्थ के अन्तर्गत श्रीमती विन्दन ‘रंगदार व्यक्ति' हैं या नहीं। मुझे मालूम हुआ है कि मेरे विद्वान बन्धुजन [सायी न्यायाधीश] इस विषयका निर्णय करने में संकोच कर रहे हैं और, इसलिए, मुझे जो-कुछ फहना है उसे सिर्फ मेरा ही मत माना जाये । मेरा दृढ़ मत है कि कानूनके अर्थके अन्तर्गत वादी रंगदार व्यक्ति नहीं है । इसके कारण निम्नलिखित है:

कानून १५, १८६९ के खण्ड २ के अनुसार कोई भी रंगदार व्यक्ति', जो आवारा घूमता पाया जाये और अपने बारमें सन्तोषजनक फैफियत देने में असमर्थ हो, दण्डका पात्र है । खण्ड ५ में रंगदार व्यक्तियों की यह व्याख्या की गई है कि उनमें, दूसरोंके साथ-साथ, 'कुली' भी शामिल हैं। १८६९ के उस कानूनके पास होनेके पहले भारतीय प्रवासियोंसे सम्बन्ध रखनेवाले कई कानून मौजूद थे। उस कानूनकी और उसके बादके कानूनोंफी प्रस्तावना देखनेसे हमें मालूम होता है कि 'कुली' शब्दका अर्थ है वे लोग जो, इन कानूनों के अनुसार सरकारी खर्चपर, या व्यक्ति-विशेषों द्वारा अपने खर्चपर, एक खास दर्जे की सेवाके लिए भारतसे इस उपनिवेशमें लाये गये हैं । इसके बाद १८७० का 'कुली एकीकरण कानून' (कुली कन्सॉलिडेशन लॉ) आया। उसमें 'कुली' शब्दका फिर प्रयोग किया गया, और इसी अर्थमें । अखीरमें, हमारा वर्तमान कानून है-१८९१ का कानून २५ । यह कई दृष्टियोंसे, १८८५-१८८७ के भारतीय प्रवासी आयोग (इंडियन इमिग्रेशन कमिशन) के परिश्रमका फल है । इस कानूनमें यह सन्तापजनक शब्द-कुली-नहीं है । इसका स्थान भारतीय प्रवासी' संशाने ले

१. नत्थी की हुई नकल उपलब्ध नहीं है; परन्तु नेटाल लॉ रिपोर्ट्स, नं० १७, तारीख २३ मार्च, १८९६ से लिया हुआ सर वाल्टर रंगका फैसला "टिप्पणियों"के परिशिष्टके रूपमें दिया गया है ।

२. यह एक गैरकानूनी गिरफ्तारीफा मुफदमा था, जिसमें एक भारतीय इंसाई महिला श्रीमती विन्दनने २०० पौंड हरजानेका दावा किया था । श्रीमती विन्दनसे एक रातको एक वतनी पुलिस सिपाहीने उनका पास दिखानेको कहा था और बादमें वे जेलमें डाल दी गई थीं । इससे प्रश्न यह उठा कि श्रीमती विन्दन कानूनके अनुसार 'रंगदार लोगों' में हैं या नहीं। न्यायाधीशने उन्हें गैरकानूनी गिरफ्तारीके लिए, २० पौंड हरजाना दिलाया था।

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