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२४१. क्या यह न्याय है ?

अगर एक यूरोपीय कोई जुर्म या नैतिक भूल करता है तो वह केवल एक व्यक्तिका दोष समझा जाता है। किन्तु वही भूल अगर किसी भारतीयसे होती है तो सारे राष्ट्रको बदनाम किया जाता है। इस कथनका प्रत्यक्ष प्रमाण हालमें ही एक मामलेमें मिला है। एक भारतीयने कुछ मकान पट्टेपर लिये और उन्हें अनीतियुक्त कामके लिए किराये पर दे दिया। ऐसे बुरे कामकी सफाई तो दी ही नहीं जा सकती । परन्तु ऐसे जुर्म या गलतीके लिए उस आदमीको भला-बुरा कहना एक बात है और उसकी भूलपर सारे राष्ट्र या कौमपर बन्दिरों लगा देना और उनका समर्थन करना एकदम दूसरी बात है । किन्तु मर्क्युरी लेनके साधारण-तथा गम्भीर माने जानेवाले चन्द्रवासी ("मैन इन द मून[१]" ) ने और हमारे सन्ध्याकालीन सहयोगी[२]ने उपर्युक्त उदाहरणको लेकर ठीक यही किया है। और पाठक यह न भूलें कि उस भारतीयको अपने मकान किरायेपर देनेवाला मालिक खुद एक यूरोपीय ही है। परन्तु इस घटनासे हमारे देश-भाइयोंको सबक तो लेना ही है। हमारा सारा व्यवहार ऐसा हो कि किसीको हमारी तरफ अँगुलीतक उठानेकी गुंजाइश न रहे। हम एक ऐसे देशमें रह रहे हैं, जहाँ हमारी छोटीसे-छोटी भूल, जैसे भी हो वैसे, हजार गुनी बढ़ाकर पेश की जाती है । इसलिए हममेंसे छोटेसे-छोटे आदमीको भी प्रत्येक कार्यमें यह सावधानी रखनी चाहिए कि कहीं हम सारे समाजको हास्यास्पद न बना दें।

[ अंग्रेजीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ४-६-१९०३


२४२. अच्छी विसंगति

इमरसनने कहा है, मूर्खतापूर्ण सुसंगति दुर्बल मनके लोगोंका भूत है। मालूम होता है, ट्रान्सवाल-सरकार सोचती है कि प्लेगके दिनोंमें सबके साथ एक-सा बरताव करना 'मूर्खतापूर्ण सुसंगति' होगी। इसलिए उसने आज्ञा जारी कर दी है कि नेटालसे कोई भारतीय ट्रान्सवालमें नहीं आयेगा । हाँ, यूरोपीय और काफिर जरूर बेरोक आ सकेंगे, यद्यपि खुद प्लेग नेटालकी इन जातियोंमें कोई भेदभाव नहीं कर रहा है और बेवकूफकी तरह वहाँ तीनोंपर समान रूपसे आक्रमण कर रहा है। इसलिए अगर कोई भारतीय इस नतीजेपर पहुँचे कि उसपर जो रोक लगाई गई है उसकी जड़में जनताके आरोग्यकी चिन्ता नहीं, राजनीतिक कारण हैं तो उसे माफ किया जाना चाहिए। हाँ, शुरू-शुरूमें जब प्लेग फैला और लोगोंमें घबराहट मची, तब लोगोंके दुर्भावको देखते हुए रोक्का लगाया जाना क्षम्य माना जा सकता था । परन्तु केवल भारतीयोंके प्रवेशपर सोच-समझकर रोक लगाना, उन्हें कुछ दिन सूतक (क्वा-रंटीन) में रहनेकी इजाजत भी नहीं देना, उनके लिए बहुत गम्भीर बात हो जाती है। खास

  1. नेटाल मर्क्युरीका एक साप्ताहिक स्तम्भ लेखक : देखिए खण्ड २, पृष्ठ ४०१-३ ।
  2. नेटाल ऐडवर्टाइज़र